उत्तराखंड की पहाड़ी वादियों में वैसे तो कई मुद्दे है। लेकिन, एक मुद्दा ऐसा है जिसका दर्द आज भी पूरा पहाड़ झेल रहा है क्योंकि, सालों से इस मुद्दे पर सिर्फ सियासत ही होती आई है। समाधान कभी नहीं मिला। ये मुद्दा है पलायन का। पहाड़ में पलायन आज भी बड़ा मुद्दा इसलिए है क्योंकि सरकार योजनाएं तो कई लाई लेकिन, पलायन पूरी तरह कभी रोक नहीं पाई। चुनाव के वक्त सियासी दल अपनी सहूलियत के हिसाब से इसे लेकर आवाज उठाते रहे हैं। सफेदपोश सिर्फ वादे करते रहे हैं। पहाड़ से मैदान तक कई सालों में सैकड़ों बार आवाज लगाई गई लेकिन, आज तक कोई वो मरहम नहीं लगा सका जिससे पहाड़ का ये घाव भर सके।
लेकिन, चुनावी मौसम में पलायन की गूंज सुनाई देने लगती है। चुनावी मंचों से इस पर बात की जाती है। वादे भी होते हैं। आरोप प्रत्यारोप का दौर भी चलता है। जैसे पलायन पर कांग्रेस सूबे की धामी सरकार को घेर रही है। कांग्रेस के ऐसे हमलों के बीच पीएम मोदी की तरफ से बड़ा बयान आया है। बता दें कि पीएम मोदी उधम सिंह नगर के रुद्रपुर में बीजेपी के लिए रैली करने आए थे।
पीएम मोदी ने भी रुद्रपुर के इस मंच से दावा किया कि पिछले कुछ सालों में पहाड़ से पलायन पर ब्रेक लगा है और वो दिन दूर नहीं जब ना सिर्फ पलायन रुकेगा बल्कि नौकरी की तलाश में प्रदेश के नौजवानों को पहाड़ छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी। पलायन का मुद्दा चुनाव में गूंजा है तो इससे जुड़े चिंताजनक आंकड़े भी याद कर लेना जरूरी है।
क्या कहते है आकड़े
आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक , देवभूमि में बीते 10 साल में 17 लाख लोग गांवों को छोड़कर शहरों में जा बसे हैं। इनमें से ज्यादातार लोग गांवों से आसपास बसे शहरों और कस्बों में जाकर बस गए हैं। पलायन निवारण आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड में ग्रामीण इलाकों से सबसे ज्यादा पलायन आसपास के कस्बों में हुआ है। इसके बाद सबसे अधिक लोग जिला मुख्यालयों में रहने के लिए आ रहे हैं। रिपोर्ट की मानें तो ग्राम पंचायतों से सबसे ज्यादा 38 प्रतिशत पलायन आसपास के कस्बों में हुआ जबकि 23 प्रतिशत लोग गांव छोड़कर जिला मुख्यालय के आसपास बस गए। 2018 से 2022 के बीच 24 गांव पलायन की वजह से वीरान हो गए। उत्तराखंड में कुल 1726 ऐसे गांव हैं जो ग्रामीणों के पलायन करने की वजह से वीरान पड़े हैं।
उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार है। सत्ता में धामी हैं और केंद्र में मोदी डबल इंजन सरकार प्रदेश को नई ऊंचाई पर पहुंचाने के दावे कर रही है। पलायन रोकने के भी। पलायन रोकने के लिए उत्तराखंड सरकार पलायन आयोग का गठन बहुत पहले कर चुकी है जो, पहाड़ की समस्याओं और रोजमर्रा जिंदगी में आने वाली चुनौतियों का पता लगाकर सरकार को अपनी रिपोर्ट देता है। साथ ही ये सुझाव भी पलायन आयोग की तरफ से दिए जाते हैं कि कैसे पहाड़ पर रोजगार और आजीविका का विकास कर सूने पड़े गांवों को फिर से गुलजार किया जा सकता है।
पलायन रोकने के लिए लाई गई कई योजनाएं
उत्तराखंड सरकार की तरफ से भी पलायन रोकने की दिशा में लगातार योजनाएं भी लाई गई हैं। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, होम स्टे योजना, मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना, पशुपालन और कृषि के साथ-साथ कौशल विकास से जुड़ी तमाम योजनाओं की शुरुआत की गई। लेकिन , कड़वी हकीकत यही है कि ऐसी तमाम कोशिशों के बावजूद पलायन रुक नहीं पाया है। क्योंकि आयोग के सुझावों पर पूरी तरह अमल नहीं हो पाया है। अब इस बार पलायन रोकने की गांरटी पीएम मोदी ले रहे हैं। पीएम मोदी दावा करते हैं कि उन्होंने अगर गारंटी ले ली तो पूरी होकर रहेगी। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि आने वाले दिनों में पहाड़ के पलायन वाले जख्म पर क्या मोदी की कोशिशों का मरहम लग पाता है या फिर हर बार की तरह ये वादा सिर्फ चुनावी वादा ही बनकर रह जाएगा।