Lok Sabha Election 2024 Result: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) दोबारा सत्ता में तो आ गई, लेकिन पिछले दो टर्म की तरह क्या पीएम मोदी उसी ठसक के साथ सरकार चला पाएंगे, यह एक बड़ा सवाल है, जो राजनीतिक गलियारे में घूम रहा है। चार सौ पार के नारे के साथ चुनाव अभियान शुरू करने वाली बीजेपी इस बार लोकसभा चुनाव में 240 पर आकर टिक गई और अकेले दम पर सरकार बनाने के नंबर तक भी नहीं पहुंच पाई। यही बीजेपी के लिए सबसे बड़ा सेटबैक है। इस बार सरकार बनाने में NDA के घटक दलों पर बीजेपी की निर्भरता बढ़ जाएगी और इसमें कोई दो राय नहीं कि नरेंद्र मोदी को 2014 के Common Minimum Programme में सिरे से बदलाव करना पड़ सकता है। राजनीतिक जानकार मोदी का ताकत कम होने की यही सबसे बड़ी वजह मान रहे हैं।
लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को मिली थी 303 सीटें
दरअसल, 2019 लोकसभा चुनाव में BJP को 303 और NDA को 353 सीटें मिली थी। यानी 2019 में बीजेपी अकेले दम पर सरकार बनाने की स्थिति में थी। इसलिए उसे NDA के घटक दलों की ज्यादा चिंता नहीं थी, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने हालात एकदम से बदल दिये हैं। इस सरकार में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री तो बन रहे हैं, लेकिन माना जा रहा है कि इस बार उनकी ताकत पहले जितनी नहीं रह जाएगी। पिछली बार की तरह वे मनमाने ढंग से फैसले नहीं ले सकेंगे।
फैसलों में घटक दलों की सहमति जरूरी
पीएम मोदी के फैसलों में अब NDA के घटक दलों की सहमति भी जरूरी हो जाएगी, क्योंकि सरकार के फैसले पर घटक दलों ने असहमति जताई तो सरकार के लिए उन फैसलों को लागू करना मुश्किल हो जाएगा। वजह ये कि बीजेपी को इस बार एनडीए के हर घटक दल की दरकार है। कोई भी दल अगर खिसकता है तो सरकार के लिए बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है।
क्या एनडीए में आम सहमति बन पाएगी?
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि पिछली सरकार और इस सरकार की शक्तियों में जमीन आसमान का अंतर होगा। एनडीए को इस बार भी Common Minimum Programme तय करना ही होगा, लेकिन क्या बीजेपी के अपने एजेंडे को घटक दल इस बार पहले जैसी तरजीह देंगे और क्या उस पर आम सहमति बन पाएगी, ये सबसे बड़ा सवाल है। बीजेपी के लिए इस बार सबसे बड़ी दिक्कत यही होने वाली है, क्योंकि हर दल अपनी-अपनी योजनाएं सरकार को देगी और सहमति उसी पर बननी है।
Common Minimum Programme के सांचे में सरकार को लेने होंगे फैसले
सभी घटक दलों की सहमति से CMP तय हो जाने के बाद सरकार को उसी Common Minimum Programme के सांचे में फैसले लेने होंगे। सरकार अगर घटक दलों की सहमति से तय हुए Common Minimum Programme की राह से भटकती है तो फिर मोदी सरकार के लिए भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। हालांकि, Common Minimum Programme कोई नई बात नहीं है। गठबंधन सरकारों में ये हमेशा से चलता आ रहा है।
1998 में भी तय हुआ था Common Minimum Programme
जब 1998 में भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए ने पहली बार सत्ता संभाली थी, उस समय भी एनडीए के घटक दलों ने मिलकर Common Minimum Programme यानि न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय किया था। इसके तहत राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, बुनियादी ढांचे के विकास और प्रभावी शासन को प्राथमिकता दी गई और घटक दलो में आम सहमति बनी थी। इसके बाद 2014 में NDA ने फिर से सरकार में आई और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। इस बार भी Common Minimum Programme तय हुआ और शासन, आर्थिक सुधार, रोजगार सृजन, बुनियादी ढांचे के विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। इसका उद्देश्य भ्रष्टाचार, काला धन और सामाजिक सशक्तिकरण जैसे मुद्दों का समाधान करना था। लेकिन इस बार के हालात कुछ अलग है।
इस बार घटक दलों के दबाव से जूझेंगे मोदी
कहते हैं न कि कमजोर को सभी दबाने की कोशिश करते हैं…और राजनीति में तो ये बेहद आम बात है। ऐसे में मोदी को अपनी सरकार के इस कार्यकाल में घटक दलों के दबाव से निश्चित तौर पर जूझना पड़ सकता है। घटक दलों के इस दबाव में मोदी अपनी सरकार को कैसे चलाते हैं, इस पर सबकी नजर रहेगी। प्रधानमंत्री सहयोगी दलों को कैसे साथ लेकर चलेंगे, ये भी गौर करने वाली बात होगी।