उत्तराखंड में हरिद्वार हमेशा से हॉट सीट रही है। कभी चुनावी दांवपेंच को लेकर तो कभी सियासी समीकरणों को लेकर। लेकिन, हरिद्नार में एक कहावत काफी प्रचलित है। कहा जाता है, ‘जिसने देखा हरिद्वार, उसने छोड़ दिया घरबार’। ये कहावत यूं नहीं कही जाती, बल्कि इसके पीछे भी कई इतिहास और कहानियां छिपी हैं। हरिद्वार का सियासी इतिहास भी अपने आगोश में कई ऐसी धूमिल यादें छिपाए है, जो बताता है कि जो एक बार हरिद्वार आया, उसने हमेशा के लिए यहां घरबार बना लिया। ऐसा ही एक किस्सा है साल 1987 लोकसभा उपचुनाव का। चुनावी मैदान में एक तरफ उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम मायावती थीं तो दूसरी तरफ बिहार से आए रामविलास पासवान। पासवान के साथ प्रचार के लिए बड़ी संख्या में उनके समर्थक बिहार से हरिद्वार आए थे। चुनाव में रामविलास पासवान को हार मिली तो वे बिहार लौट गए। लेकिन, उनके साथ आए समर्थक हमेशा के लिए हरिद्वार के होकर रह गए।