Uttarkashi Mangsir Bagwal: उत्तरकाशी एवं टिहरी जनपद के विभिन्न हिस्सों में दीपावली के ठीक एक महीने बाद मंगशीर की बग्वाल या कहें दिसंबर की दीपावली का आयोजन टिहरी रियासत के समय से चला आ रहा है। मंगशीर की बग्वाल 29 नवंबर से 1 दिसंबर तक मनाई जाएगी।
मान्यता है कि गढ़वाल नरेश महिपत शाह के शासनकाल में तिब्बती लुटेरे गढ़वाल की सीमाओं पर लूटपाट करते थे। तब राजा ने लोदी रिखोला एवं माधोसिंह भण्डारी के नेतृत्व में चमोली के पैनखंडा और उत्तरकाशी के टकनोर क्षेत्र के गर्तांग गली से सेना भेजी थी।
भोट प्रांत तिब्बत में तिब्बतियों को पराजित करने के पश्चात विजयी माधो सिंह भण्डारी अपने सैनिकों के राजदरबार में पहुंचे थे। तब से इसे विजय उत्सव के रूप में टिहरी उत्तरकाशी एवं जोनसार में इसे मंगशीर की बग्वाल के रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है।
कहा जाता है कि चीन एवं भारत के बीच मैकमोहन रेखा के निर्धारण के समय माधो सिंह भण्डारी द्वारा स्थापित मुनारों का भी ध्यान रखा गया था। पहाड़ों में हो रहे पलायन के कारण कुछ समय तक यह दीपावली लगभग विलुप्त होने की कागर पर थी, लेकिन उत्तरकाशी में अनघा फाउंडेशन ने पिछले 17 सालों से इस परंपरा को बचाने के लिए उत्तरकाशी जनपद मुख्यालय में इस दीपावली पर पर्यटकों को स्थानीय छात्रों एवं परवासी उत्तराखंडियों के बीच लाने का काम किया।
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इस दिन परंपरागत भैलो नृत्य, उत्तराखंड के पौराणिक खेल और विलुप्त हो चुकीं परंपरागत वस्तुओं के साथ उत्तराखंड के पौराणिक खान-पान की व्यवस्था की जाती है। इस दीपावली में लाखों की संख्या में पर्यटक भाग लेते हैं और पलायन से बीरान पड़े गांव एक बार फिर रोशनी से जगमगा उठते हैं।
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