तीर्थ नगरी ऋषिकेश को ऋषियों की भूमि कहा जाता है। यहां सदियों से ऋषि मुनि तप और ध्यान में लीन हैं। खूबसूरत वादियों वाले ऋषिकेश में कई प्राचीन मंदिर हैं। उन्हीं में से एक है भगवान सत्यनारायण का ये 500 साल पुराना मंदिर। इस मंदिर को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं हैं। माना जाता है कि यहां भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और भगवान उनकी सभी मुरादों को पूरा कर देते हैं।
सत्यानाराण मंदिर चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव है। जो भी श्रद्धालु चारधाम यात्रा के लिए जाते हैं वो पहले सत्यनाराण भगवान के इस मंदिर में आकर मत्था जरूर टेकते हैं। मंदिर में भगवान के दर्शन पूजन के बाद ही चारधाम यात्रा आगे बढ़ती है। इस मंदिर में कोटेश्वर महादेव भी विराजमान हैं। इसके अलावा भगवान नारायण की सवारी माने जाने वाले गरुड़ देवता भी इस मंदिर में स्थापित हैं। इस मंदिर में एक दिव्य कुंड भी है जिसमें स्नान करने से सभी पीड़ाएं दूर होती है। मान्यता है कि मंदिर के इस दिव्य कुंड में चारधाम यात्रा शुरू करने से पहले और चारधाम यात्रा खत्म होने के बाद स्नान करना होता है। मान्यता है कि इस जलकुंड में स्नान करने से तरोताजगी महसूस होती है और शरीर की पूरी थकान मिट जाती है।
सत्यनारायण मंदिर को चारधाम की पहली चट्टी के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर की स्थापना महंत माधव दास जी महाराज ने की थी। ये मंदिर देवभूमि का एक प्राचीन सिद्धपीठ है। मंदिर जितना प्राचीन है उतना ही खूबसूरत भी है। यहां की फिज़ाओं में दिव्य ऊर्जा अनवरत बह रही है। जिसे श्रद्धालु आसामनी से महसूस कर सकते हैं। सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश के कोनो-कोने से श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। सत्यनारायण भगवान की आराधना से भक्तों के मनो को असीम शांति मिलती है।
ऋषिकेश का ये 5 सदी पुराना मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन चुका है। यहां लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं। चारधाम तीर्थ यात्रा का पहला पड़ाव होने की वजह से मंदिर का महत्व बहुत ज्यादा है। मंदिर में साल भर हवन पूजन और भंडारों का आयोजन होता रहता है। भगवान सत्यनारायण के आशीर्वाद से भक्तों की झोलियां भर जाती हैं। यहां आने वाला कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं लौटता।