पहाड़ों में अभिशाप माने जाने वाला चीड़ का पेड़ अब स्थानीय लोगों को रोजगार देगा। दरअसल, पहाड़ों में चीड़ का पेड़ आग लगने का सबसे बड़ा जरिया है। वहीं, जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान एक रचनात्मक और अभिनव प्रयोग करने वाले प्रशासक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने चारधाम पौराणिक गंगा पथ यात्रा, बर्ड वाचिंग, चौरासी कुटिया, द गंगा फेस्टिवल और पहाड़ी अंजीर को बढ़ावा दिया।
उन्होंने अगरोड़ा स्थित ग्राम सभा मरोड़ के पाली गांव में स्थलीय निरीक्षण के दौरान चीड़ के बीज को महत्वपूर्ण संसाधन में बदलने का बीड़ा उठाया। चीड़ के बीज से ग्रामीणों के माध्यम से फ्रूटस प्राप्त किए। इस दौरान परियोजना प्रबंधक रीप को निर्देशित किया कि स्वयं सहायता समूह और वन पंचायत के माध्यम से संग्रहित चीड़ के बीच को 500 रुपये प्रति किलोग्राम में खरीदा जाए।
उन्होंने कहा कि इससे पाइन नट्स फ्रूट्स और पाइन सीड ऑयल तैयार किया जाए। इसके लिए जिलाधिकारी ने सतपुली के बिलखेत में रीप परियोजना के अंतर्गत ज्योति आजीविका स्वयं सहकारिता को इसकी यूनिट स्थापित करने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर 22 लाख रुपये की धनराशि भी जारी कर दी है। इस दौरान जिलाधिकारी से पाली गांव के स्थानीय लोगों ने बातचीत के दौरान कहा कि चीड़ को इस तरह संसाधनों में बदलने से एक ओर स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी औऱ दूसरी ओर कुछ हद तक चीड़ के जंगल पर अंकुश भी लगेगा।
उन्होंने कहा कि इससे जंगल में लगने वाली आग में भी कमी आएगी। कहा कि चीड़ के जंगल में कमी आने से अन्य प्रजातियों को पनपने का अवसर भी मिलेगा। देवदार, बूरान्स, मरु जैसे प्रजातियों के वृक्ष अधिक पनपेंगे, जिससे हरियाली अधिक होगी। लोगों ने डीएम की इस पहल का स्वागत किया। कहा कि अगर यह प्रयास ठीक से सफल हुआ तो आने वाले समय में लोगों को इसका व्यापक लाभ मिलेगा।