लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उत्तराखंड के अलग-अलग जिलों से सामने आई विरोध प्रदर्शन की ये तस्वीरें धामी सरकार की टेंशन बढ़ाने वाली हैं। क्योंकि आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं ने अपनी पुरानी मांगों को लेकर नए सिरे से सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इस बार विरोध दफ्तरों से नहीं बल्कि सड़कों पर उतरकर जताया गया। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और आशा वर्कर समेत कई संगठनों ने अपनी मांगों को लेकर हल्लाबोल किया। हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे और सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।
अलग-अलग शहरों में एक साथ उठे विरोध के सुर सरकार के माथे पर शिकन लाने वाले हैं। ये बात हम यूं ही नहीं कह रहे हैं। बल्कि तस्वीरें खुद इस बात की गवाह हैं। विरोध प्रदर्शन पर उतरी नारी शक्तियों का शोर सड़कों पर गूंज रहा है। एक साथ तीन-तीन शहरों में ये सैलाब विरोध के रूप में सामने आया। इस विरोध के सुर एक हैं, मुद्दे एक हैं, और मांगे भी एक जैसी हैं।
उत्तराखंड के तीन शहरों की ये तस्वीरें एक जैसी हैं। प्रदर्शन पर उतरी आंगनवाणी और आशा वर्कर्स सरकार से अपना हक मांग रही हैं। महंगाई के इस दौर में वेतन बढ़ाने की मांग कर रही हैं। सरकार को चुनावी घोषणा पत्र में किए लंबे चौड़े वादे याद दिला रही हैं। वादा नारी सशक्तिकरण का, वादा महिलाओं को बराबरी का हर देने का, वादा उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का। जब ये वादा लंबे अरसे हकीकत से दूर रहा तो इन महिलाओं को विरोध का रुख अख्तियार करना पड़ा।
पौड़ी में एक दो नहीं बल्कि 11 संगठनों ने सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किया। सरकार को नारी सशक्तिकरण और चुनावी दौर के वादे याद दिलाए।
टिहरी में आशा वर्कर्स ने 4 सूत्रीय मांगों को लेकर सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया। साथ ही आगामी लोकसभा चुनाव में कार्य बहिष्कार की चेतावनी भी दे डाली।
आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं की मांगे
सड़कों पर विरोध कर रही आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और आशा वर्कर सरकार से वेतन बढ़ाने की मांग कर रही हैं। इनकी मांग है कि इनका न्यूनतम वेतन 26 हजार रुपये प्रति माह किया जाए। मानदेय में हर का वृद्धि हो। रिटायरमेंट पर 2 लाख रुपये अंशदान दिया जाए। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और आशा वर्कर्स को राज्य कर्मचारी का दर्जा देकर नियमित किया जाए और उन्हें पेंशन का लाभ मिले।
ये तमाम वो वादे हैं जो सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इन महिलाओं से किए थे। लेकिन अभी तक इन वादों को पूरा नहीं किया गया। जिसकी वजह से इन आंगनबाड़ी और आशा वर्कर्स को सड़कों पर उतरना पड़ा। इस बार आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सरकार को खुली चेतावनी दे रही हैं। अगर उनकी मांगे पूरी नहीं हुई तो वो चुनाव का बहिष्कार कर देंगी। दफ्तरों पर तालाबंदी होगी और बड़ा आंदोलन किया जाएगा।
इस बार महिला कर्मियों से जुड़े कई संगठनों ने अपनी मांगों को लेकर बड़े आंदोलन का मन बना लिया है। इन महिलाओं ने साफ कर दिया है कि मांगें पूरी ना होने तक विरोध निरंतर जारी रहेगा। वोट ना देने की चेतावनी भी सरकार को दे दी गई है। अगर जल्द ही सरकार ने इन महिला कर्मियों का गुस्सा शांत नहीं किया तो इसका खामियाजा आगामी लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है। अगर चुनाव बहिष्कार होता है तो इससे बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। अब देखना होगा कि धामी सरकार इन महिला कर्मियों की मांगों पर क्या विचार करती है।