गंगा नदी के पानी को सबसे पवित्र पानी माना जाता रहा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये पानी बन जहरीला होता है जा रहा है। अफसोस कि प्रशासन कोई भी कदम नहीं उठा रहा है। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से कुछ खास कदम नहीं उठाए गए हैं। तो सवाल उठता है कि क्या उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सो रहा है? यह सवाल इसलिए पूछ जा रहे हैं क्योंकि देशभर में गंगा स्नान का काफी महत्व होता है। गंगोत्री की चोटियों से निकलकर गंगा देश के अलग-अलग राज्यों में प्रवाहित होती है लेकिन ऋषिकेश का जो नजारा है वो वाकयी में चिंता व्यक्त करने वाला है।
तस्वीरों में गंगा के पानी को देखकर ही साफ पता चल रहा है कि अभी तक पवित्र नदी में कितना जहर घुल चुका है। पहाड़ों और पत्थरों के बीच से आता केमिकल वाला गंदा पानी गंगा की पवित्र अविरल धारा को अपवित्र कर रहा है। ऐसे में गंभीर सवाल है कि इस स्थिति की जिम्मेदारी कौन लेगा। वहीं गंगा नदी के हालातों पर एनजीटी ने उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को फटकार लगाई है।
आखिर ऋषिकेश में यह स्थिति क्यों पैदा हुई
दरअसल ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि ऋषिकेश में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे प्रोजेक्ट पर काम हो रहा है। इसके चलते ढालवाला, ब्रह्मपुरी, शिवपुरी, ब्यासी समेत कई जगहों पर निर्माणाधीन टनल से केमिकल युक्त सिल्ट का गंदा पानी सीधा गंगा में जा रहा है। नदीं में गंदगी का अंबार लगाता जा रहा है। भलें ही रेल विकास निगम विभिन्न निर्माणाधीन टनलो से निकल रहे सिल्ट के पानी को सेडिमेंटेशन टैंक में सिल्ट का पानी रोकने बात कह रहा है लेकिन तस्वीरें कुछ और हीं बयां कर रही हैं।
गंगा नदी का पानी हर दिन दूषित हो होता जा रहा है लेकिन उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आंख बंद कर चुपचाप बैठा हुआ है। बोर्ड की लापरवाही से पीएम मोदी की नमामि गंगे परियोजना को पलीता लगता नजर आ रहा है। सिर्फ ऋषिकेश ही नहीं, पूरे उत्तराखंड में गंगा नदी में अलग-अलग फैक्टरी और दूसरी वजहों से गंदा पानी गंगा में मिलता है।
गंगा की गंभीर स्थिति को लकर अब NGT काफी नाराज है। गंगा के दूषित होने वाले हालातों पर NGT ने उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को फटकार लगाई है। NGT की सुनवाई करने वाली पीठ ने कहा- उत्तराखंड के सभी 13 जिलों में सीवेज का गंदा पानी गंगा में छोड़ा जा रहा है। पूरे उत्तराखंड में सीवेज उत्पादन 70 करोड़ लीटर प्रति दिन होने का अनुमान है। जिसका 50 फीसदी भी सही तरह से इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।
रेल प्रजोक्ट के लिए टनल बनाने का जिम्मा 6 संस्थाओं को सौंपा गया है। इनमें ऋषिकेश से ब्रह्मपुरी तक मैक्स इंफ़्रा संस्था समेत कई अन्य संस्था मानकों को ताक पर रखकर काम कर रही है। इनकी इस लापरवाही से पीएम मोदी की अरबो रुपयों की नमामि गंगे परियोजना को पलीता लग रहा है। गंगा के यह हालात देखकर लगाता है कि गंगा की स्वच्छता सिर्फ नाम के लिए रह गई है।