कुमाऊं में होली में चीर या निशान बंधन का विशेष महत्व माना जाता है। होलिकाष्टमी के दिन मंदिरों में सार्वजनिक स्थानों पर एकादशी का मुहूर्त देखकर चीर बंधन किया जाता है। चीर बांधने के साथ ही होल्यारों द्वारा घर-घर जाकर खड़ी होली गायन शुरू हो गया। होली के गीतों और रंगों से वातावरण होलीमय बना हुआ है। कुमाऊं में होली प्रारंभ करने से पहले प्रत्येक घर से एक-एक नए कपड़े के रंग-बिरंगे टुकड़े चीर के रूप में लंबे लट्ठे पर बांधे जाते हैं। उसके बाद राम, कृष्ण, शिव-पार्वती कैलै बांधी चीर, गणपति बांधी चीर और होली गाकर होली का शुभांरभ किया जाता है।
कुमाऊं में चीर हरण का भी प्रचलन है। गांव में चीर को दूसरे गांव वालों की पहुंच से बचाने के लिए दिन-रात पहरा दिया जाता है। चीर चोरी चले जाने पर अगली होली से गांव की चीर बांधने की परंपरा समाप्त हो जाती है। कुछ गांवों में चीर की जगह लाल रंग के झंडे निशान का भी प्रचलन है। चीर मंदिरों में होली से पूर्व एकादशी पर खड़ी होली के पहने दिन चीर बांधने का अपना ही महत्व है। इस दिन लोग बांस के लंबे डंडे में नए कपड़ों की कतरन को बांधकर मंदिर में स्थापित करते हैं। फिर चीर के चारों ओर लोग खड़ी होली गायन करते हैं और घर-घर जाकर खड़ी होली गाते हैं।
होलिका दहन के दिन इस चीर को होलिका दहन वाले स्थान पर लाते हैं। इसके बाद बांस में बंधे कपड़ों की कतरन को प्रसाद के रूप में बांटते हैं। इसे लोग अपने घरों के मुख्य द्वार पर बांधते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे घर में बुरी शक्तियों का प्रवेश नहीं होता और घर में सुख-शांति बनी रहती है।