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ऋषिकेश के इस धाम में शिव की जटाओं का दिखा था रौद्र रूप

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ऋषिकेश को तीर्थ नगरी कहा जाता है। ये सदियों से ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही है। यही ऋषिकेश हिंदुओं की आस्था का केंद्र भी है। ऋषिकेश में कई पौराणिक मंदिर और तीर्थ स्थल मौजूद हैं। उन्हीं में से एक है वीरभद्र मंदिर। मंदिर जितना दिव्य है उतना ही प्राचीन भी। कहा जाता है कि ये मंदिर 1300 साल पुराना है। इस मंदिर का अपना एक पौराणिक इतिहास है। इस मंदिर का ज़िक्र भागवत पुराण में किया गया है। माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान शिव ने वीरभद्र को सीने से लगाकर उनके क्रोध को शांत किया था। जिसके बाद वीरभद्र इस दिव्य शिवलिंग के रूप में इसी मंदिर में विराजमान हो गए। तब से लेकर ये मंदिर हिंदुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है।

प्राचीन मंदिर से जुड़ी कहानी

कहा जाता है कि हरिद्वार में दक्ष प्रजापति का यज्ञ चल रहा था। इस यज्ञ में सभी देवी देवताओं को आमंत्रण मिला लेकिन राजा दक्ष ने अपनी बेटी सती और दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। भगवान शिव के मना करने के बावजूद भी माता सती उस यज्ञ में चली गई।  माता सती का मानना था की वह उन्हीं का घर है तो आमंत्रण की कोई जरूरत नहीं है। सती यज्ञ में पहुंची तो उन्होंने देखा कि वहां सभी देवी देवताओं की मौजूदगी में यज्ञ चल रहा था। यह देखकर माता सती ने अपने पिता राजा दक्ष से सवाल किया कि उन्हें आमंत्रित क्यों नहीं किया गया। यह सुनकर राजा दक्ष ने भगवान शिव के लिए कई अपशब्द कहे। माता सति भगवान शिव का अपमान सहन नहीं कर पाई और उन्होंने हवन कुंड की अग्नि में कूदकर खुद की आहुति दे दी। जब भगवान शिव को यह पता चला तो उन्हें बहुत गुस्सा आया, शिव ने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के पूर्व भाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रकट हुए। शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया लेकिन इसके बाद भी वीरभद्र का क्रोध शांत नहीं हुआ। रास्ते में जो भी दिखता वो उसका गला काट देते। जब वीरभद्र ऋषिकेश पहुंचे, तो वहां भगवान शिव ने उन्हें गले लगा लिया। जिसके बाद वो शांत हुए और वहीं शिवलिंग के रूप में विराजमान हो गए। तभी से लेकर इस क्षेत्र को वीरभद्र क्षेत्र और इस मंदिर को वीरभद्र मंदिर के नाम से जाना जाता है।

वीरभद्र मंदिर उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध सिद्धपीठ है। इस मंदिर का इतिहास आदि-अनादी काल से जुड़ा है। यही वजह है कि इस मंदिर में भक्त दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। साल भर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। भक्त यहां अपनी मनाकामनाएं लेकर आते हैं और भगवान के आशीर्वाद से उनकी सभी मुरादें पुरी हो जाती हैं। इसके अलावा महा शिवरात्रि पर्व पर यहां अलग ही रौनक देखने को मिलती है। हजारों भक्त यहां रात में ही भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए एकत्रित हो जाते हैं।


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