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उधार की सांसे लेकर ये शख्स ऐसे परिवार का कर रहा पालन पोषण

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Roorkee Gul Mohsin : जिंदगी हर किसी के लिए आसान नहीं होती। मुश्किल आने पर ज्यादातर लोग सहारा ढूंढने निकल पड़ते हैं। वहीं, चंद ऐसे खुद्दार लोग होते हैं, जो अपने बल पर संघर्ष का रास्ता अपनाते हैं। रुड़की निवासी गुल मोहसिन भी उन्हीं लोगों में से एक हैं। अमूमन लोग अपना घर चलाने के लिए मेहनत मजदूरी करते हैं, लेकिन 62 साल के गुल मोहसिन घर चलाने के साथ-साथ अपनी जिंदगी का पहिया चलाने के लिए भी मेहनत करते हैं।

शहर में घूमतीं हजारों ई-रिक्शा के बीच उधार की सांसे यानी ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर ई-रिक्शा चलाते गुल मोहसिन अलग से नजर आ जाते हैं। उन्हें देखकर सवाल तो हर किसी के मन में उठता है, लेकिन आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में किसको दूसरों का दर्द जानने की फुर्सत है। वहीं, श्रेष्ठ उत्तराखंड की टीम ने जब गुल मोहसिन से बात की तो जिंदगी की जद्दोजहद के असल मायने निकल कर सामने आए। दोनों फेफड़े खराब होने के चलते गुल मोहसिन के लिए दो वक्त की रोटी के साथ-साथ अपनी सांसों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम भी करना पड़ता है। कम मुश्किल वाले लोग भी आपको सड़क किनारे हाथ फैलाते हुए नजर आ जाएंगे, लेकिन गुल मोहसिन की खुद्दारी और मेहनतकशी के आगे मुश्किलें भी शर्मिंदा हैं। हालांकि, सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं की भीड़ में किसी ने आगे बढ़कर उनका दुख-दर्द बांटने की ज़हमत भी नहीं उठाई।

कोरोना काल से बदल गई जिंदगी

रुड़की के पश्चिमी अंबर तालाब निवासी गुल मोहसिन पहले टेलर का काम कर अपने परिवार को पालते थे। 2009 में उन्हें हार्ट अटैक आया, लेकिन कोरोना काल के बाद तो जैसे जिंदगी परेशानियों से घिरती चली गई। दोनों फेफड़े जवाब दे गए। इस कारण पैर से सिलाई मशीन चलाना तो दूर पैदल चलना भी मुश्किल हो गया। डॉक्टरों का कहना था कि जब तक जिंदगी है, सिलेंडर से ऑक्सीजन लेनी पड़ेगी। गुल मोहसिन ने हार नहीं मानी, बल्कि 2 साल पहले लोन लेकर ई-रिक्शा का हैंडल थामा। काम मंदा होने पर कुछ दिन पहले दो-तीन किस्त भी अदा नहीं कर पाए। क़िस्त चुकाने के लिए थोड़ी ज्यादा मेहनत कर रहे हैं, लेकिन किसी से कोई शिकवा नहीं। ऑक्सीजन सिलेंडर से सांस लेकर रूड़की की सड़कों पर ई-रिक्शा चलाकर जीवन यापन करने का प्रयास कर रहे हैं। तीन बेटे और दो बेटियां हैं। सभी की शादी हो चुकी है। गुल मोहसिन अपनी पत्नी के साथ रहते हैं।

गुल मोहसिन बेशक खुद्दार इंसान हैं। खुद मेहनत कर अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं। रोजाना 400 से 500 रुपये तक की आमदनी में अपना और पत्नी के खर्च के अलावा ई-रिक्शा की किस्त भी निकालनी होती है। साथ ही दवाइयों का इंतजाम भी करना पड़ता है।


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