Pandav Lila in Uttarkashi: उत्तरकाशी डुंडा ब्लॉक के भाटगांव धनारी में 45 साल बाद फिर अपनी पौराणिक संस्कृति को बचाए रखने के लिए ग्रामीणों ने पांडव लीला मंचन का आयोजन किया। ग्रामीणों का कहना है कि यह हमारी पौराणिक संस्कृति है जो धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। यही कारण है कि 45 साल बाद गांव के बुजुर्गों ने इस पौराणिक संस्कृति और रीति-रिवाज को जीवित रखने के लिए फिर से गांव में पांडव लीला का आयोजन किया।
पांडव लीला हिंदू महाकाव्य महाभारत की कहानियों का एक अनुष्ठानिक अभिनय है। यह उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में किया जाने वाला एक पारंपरिक लोकनृत्य है। इसे पांडव नृत्य भी कहा जाता है। पांडव लीला में गांव के लोग महाभारत के पांच नायकों की भूमिका निभाते हैं और लोक वाद्य यंत्रों के साथ नृत्य करते हैं। यह नृत्य नवंबर से फ़रवरी के बीच आयोजित किया जाता है। खास बात यह है कि पांडव पत्रों पर देवता अवतरित होने के बाद पांडव पसवा अग्नि कुंड मैं गर्म हुई लोह की सबलों को जीव से चढ़ते हैं, जिसको दिव्य शक्ति भी कहा जाता है।
पहले दिन रात को गांव की थात पर अखंड दीपक जलाकर पांडव पश्वों को अवतरित किया गया। दूसरें दिन ग्रामीण अपने आराध्य देव डोलियों और पांडव पश्वों के साथ भागीरथी गंगा घाट पर पहुंचे। यहां उन्होंने मां गंगा की विशेष पूजा-अर्चना के साथ गंगा में डुबकी लगाई। इसके बाद पांडव पश्वों ने मंदिर परिसर में नृत्य कर ग्रामीणों को आशीर्वाद दिया।
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भाटगांव के ग्रामीणों ने बताया कि गांव में 45 साल बाद पांडव नृत्य का आयोजन किया। सबसे पहले धनारी पट्टी के भाटगांव में पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता था, लेकिन कुछ सालों में किसी कारण यह आयोजन नहीं किया गया। अब दोबारा शुरू कर दिया गया है। कहा कि पांच दिनों तक चले इस आयोजन से गांव में एकता का परिचय होता है। साथ ही पांडव नृत्य को देखने के लिए दूरदराज गांव से ग्रामीण पहुंच रहे हैं। इसके बाद पशु आहार ग्रामीणों को सुख-शांति, क्षेत्र की खुशहाली की कामना का आशीर्वाद देते हैं।
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