Dev Sanskriti Vishwavidyalaya : देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार में शनिवार को पहली बार अद्भुत समागन हुआ। यहां सिक्ख समाज और सनातन संस्कृति का अनोखा समागम हुआ। निहंग समाज के बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर वाले के नेतृत्व में शांतिकुंज पहुंचे 45 निहंग सिखों के जत्थे ने पांच कुंडलीय यज्ञ भी किया। समागम का शुभारंभ राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह, प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पंड्या और फकीर सिंह खालसा के आठवें वंशज निहंग समाज के प्रतिनिधि बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर ने सयुंक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर किया। समापन से पूर्व राज्यपाल ने प्रज्ञागीतों का (कुमांउनी), ई न्यूज लेटर रिनांसा, धन्वंतरी पत्रिका, संस्कृति संचार आदि का विमोचन किया।
राज्यपाल गुरमीत सिंह ने कहा कि आज जो विचारों का मिलन हुआ है, आज जो धाराओं का मिलन हुआ है, वह अपने आप में अलग है। कहा है कि आज सोच का जो मिलन हुआ है, उसकी गूंज पूरे ब्रह्मांड में जाए। राज्यपाल का कहना है कि आज यह जगह यह सोच अपने आप में बिल्कुल अद्भुत है। आज संत कबीर की भी जयंती है। कबीर सामाजिक सद्भाव, समरसता, समाज सुधारक और दार्शनिक कवि थे। आज छठे बादशाह सदगुरु का प्रकाश पर्व भी है। उन्होंने कहा कि जब आप गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हैं तो आप ब्रह्मांड के केंद्र बिंदु के साथ मिलने की कोशिश करते हैं। इस प्रकार गुरु नानक देव जी ने जो मूल मंत्र हमको दिया है, वह भी ब्रह्मांड के केंद्र बिंदु के बारे में बताता है।
बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर वालों का कहना है कि देश के लिए बहुत ही अच्छा समागम है। यह सिख और सनातन का जो रिश्ता है, उसे हम पूरी दुनिया को दिखाएंगे कि हम सब एक हैं। उनको एक मैसेज है कि सिख और सनातन का रिश्ता न कभी टूटा है, न कभी टूटेगा। कहा कि इस तरह का समागम धरती पर पहली बार ही हुआ।
डीएसवीवी के प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पंड्या का कहना है कि बहुत ही अविश्वसनीय, ऐतिहासिक और अलौकिक समागम हरिद्वार की धरती पर संपन्न हुआ। गुरुदेव ने जब गायत्री परिवार की स्थापना की थी तो उन्होंने चार सूत्रों को दिया था एकता, क्षमता, सुचिता और ममता। आज 15 करोड़ गायत्री परिजनों में 5 हजार से ज्यादा केंद्रों में गायत्री परिवार फैला हुआ है। उसके पीछे का भाव यही है कि पूरा विश्व एक साथ एकत्र हो, अच्छे देश के लिए भारतीय संस्कृति के जागरण के लिए हम लोग संकल्पित हो।
डॉ चिन्मय पंड्या ने कहा कि पहली बार दोनों भाइयों ने एक साथ बैठ करके एक ही साथ हरिद्वार की धरती पर समागम को संपन्न किया। आज का दिन निश्चित रूप से अनेक दिन के लिए बहुत समय तक स्मृति में सजाने वाला है। यज्ञ भी पहली बार एक साथ हुआ है। बहुत ही अलौकिक पल था और हर व्यक्ति जो इसका साक्षी बना, वह निश्चित रूप से अपने सौभाग्य को सराह रहा है।