Commander Nishant Singh : जांबाजी के लिए मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित कैप्टन अंशुमान के माता-पिता का दर्द सुनकर हर कोई दुखी है। वहीं, देहरादून की एक मां का दर्द इससे भी गहरा है। पति से तलाक के बाद प्रोमिला सिंह के जीवन की हर उम्मीद उनका नौसेना में कमांडर बेटा निशांत सिंह था।
एयर क्राफ्ट क्रैश के दौरान ट्रेनी पायलट को बचाने में निशांत की जान चली गई थी। निशांत की शादी को महज चार महीने हुए थे। बहू अपने पति निशांत की सभी यादें अपने साथ ले गई। पेंशन का पूरा लाभ भी सिर्फ बहू को मिल रहा है। मां के पास जीवन जीने का कोई सहारा नहीं बचा। न ही कमाई का कोई जरिया।
गर्दिश में दिन गुजार रही बुजुर्ग मां कहती है कि अंशुमान के माता-पिता की आवाज जायज है। बलिदानी बेटे की पेंशन में माता-पिता को भी अंश मिलना चाहिए। ऐसे अगर हर मां की उपेक्षा हुई, तब तो कोई भी मां अपने बेटे को सेना में नहीं भेजेगी। सहस्त्रधारा रोड पर गंगाकुंज अपार्टमेंट का फ्लैट नंबर बी-302। इसमें प्रवेश करते ही कमरे की दीवारें नौसेना कमांडर निशांत सिंह के शौर्य पुरस्कारों से सजी हैं। निशांत की उनकी मां के साथ कई तस्वीरें लगी हैं।
फ्लैट में रहने वालीं 68 वर्षीय प्रोमिला देवी बताती हैं कि यह तस्वीरें ही उनकी एकमात्र पूंजी हैं। जिंदगी जीने का उनके पास कोई दूसरा सहारा नहीं है। कहती हैं कि निशांत नौसेना में कमांडर था। वह नौसेना के युवा पायलट को ट्रेनिंग भी देता था। नवंबर 2020 में वह मिग-29 एयर क्राफ्ट क्रैश की उड़ान पर था। अरब सागर में उसका प्लेन क्रैश हो गया। भारतीय नौसेना ने कमांडर निशांत सिंह को मरणोपरांत नौसेना पदक से नवाजा था। प्रोमिला देवी बताती हैं कि वह अकेले ही इस फ्लैट में जीवनयापन कर रही हैं। पति से पहले ही उनका तलाक हो चुका है।
नायब रंधावा से शादी के चार महीने बाद ही बेटे का बलिदान हो गया। बहू को एक मुश्त 70 लाख रुपये की आर्थिक मदद मिली और अब एक लाख 80 हजार रुपये पेंशन मिलती है। वह कहती हैं कि उन्होंने अपने बेटे का 35 साल तक पालन-पोषण किया। उसे सेना में भेजा, लेकिन उसकी पेंशन का एक पैसा मुझे नहीं मिलता। वह रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी मिलीं, उन्हें अपनी पीड़ा बताई। रक्षामंत्री ने उन्हें मदद का भरोसा दिलाया था, लेकिन अब तक कोई मदद नहीं हुई। प्रोमिला सिंह कहती हैं कि वह अपना अधिकार मांग रही हैं।