Agricultural Land Decreased in Uttarakhand: उत्तराखंड में हर साल पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाली आबादी रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों का रुख करती है। इस कारण उनकी गांव की कृषि भूमि पर कोई भी खेती नहीं होती और भूमि की उपज क्षमता धीरे-धीरे खत्म हो जाती है। इसी कारण प्रदेश में हर साल कृषि भूमि तेजी से घट रही है, लेकिन कृषि विभाग इस तरफ कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है।
उत्तराखंड में पलायन एक बड़ी समस्या है, जिससे निजात पाने के लिए कई बार सरकारों ने बड़े कदम उठाए हैं, लेकिन आज तक प्रदेश में पलायन को रोकने के लिए कोई ऐसा रास्ता तैयार नहीं किया गया है, जिससे पलायन को रोका जा सके। प्रदेश में तेजी से हो रहे पलायन की वजह से हर साल पर्वतीय क्षेत्रों में कई हेक्टेयर कृषि भूमि को नुकसान हो रहा है।
पिछले 12 सालों में उत्तराखंड से 17 लाख से ज्यादा लोग पहाड़ी क्षेत्र से मैदानी क्षेत्र में पलायन कर चुके हैं। इसकी वजह से प्रदेश में 2 लाख हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि बंजर हो चुकी है। इसको दोबारा उपजाऊ बनाने के लिए अब जगदीशीला तीर्थाटन समिति ने जिम्मा लिया है। समिति प्रदेश की उन भूमि पर जाकर खेती करने का काम करेगी, जहां से कृषि भूमि के मालिकों ने पलायन कर दिया है और उनकी कृषि भूमि बंजर पड़ी हुई है।
पूर्व कृषि मंत्री प्रसाद नैथानी ने भाजपा सरकार और मौजूदा कृषि मंत्री गणेश जोशी पर आरोप लगाते हुए कहा कि उनके कृषि मंत्री रहते हुए प्रदेश में एक सर्वे कराया गया था, जिसके अनुसार प्रदेश में 9 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि है, लेकिन तेजी से हो रहे पलायन की वजह से 2 लाख 45 हजार हेक्टेयर भूमि बंजर हो चुकी है।
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उन्होंने कहा कि ना तो सरकार कोई सर्वे कर रही है और ना ही बंजर हो चुकी कृषि भूमि की सुध ले रही है। वहीं, कृषि मंत्री गणेश जोशी ने भी माना है कि प्रदेश में 2 लाख हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि बंजर हो चुकी है, लेकिन कृषि मंत्री इस बंजर हो चुकी भूमि के लिए तेजी से हो रहे विकास और भू माफिया को वजह मानते हैं। उनका कहना है कि सरकार ने हाल ही में जो सख्त भू कानून बनाने की बात की है, उसके जरिए प्रदेश में भूमि को घटने से रोका जा सकता है।
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