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देवभूमि के इस मंदिर में भगवान कृष्ण की नागराजा के रूप में होती है पूजा

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Sem Nagraja Temple : देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में भगवान विद्यमान हैं। ऐसी पौराणिक मान्यता है। उत्तराखंड में सेम मुखेम प्रसिद्ध नागतीर्थ है। यह नागतीर्थ टिहरी के प्रतापनगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत स्थित है। श्रद्धालुओं में यह नागतीर्थ सेम नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर के गर्भगृह में नागराजा की स्वयंभू शिला है। यह शिला द्वापर युग की बताई जाती है। यहां पर भगवान कृष्ण को साक्षात नागराज के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि यहां पर पूजा-अर्चना करने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है।

टिहरी के प्रतापनगर क्षेत्र के अंतर्गत ऊंची पहाड़ी पर भगवान कृष्ण का सेम नागराजा मंदिर स्थित है। यहां पर भगवान कृष्ण नागराज के रूप में विद्यमान हैं। यह मंदिर 7000 फीट की ऊंचाई पर रमणीक स्थान पर स्थापित है। सेम मुखेम नागराजा मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। यहां देश-प्रदेश से श्रद्धालु भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं। अपनी अनोखी मान्यताओं और परंपराओं के लिए यह मंदिर प्रसिद्ध है। हर साल हजारों श्रद्धालु यहां कालसर्प दोष के निवारण और भगवान कृष्ण के दर्शन के लिए आते हैं।

मंदिर के रावल बताते हैं कि द्वापर युग में इस स्थान पर रमोली गढ़ के गढ़पति गंगू रमोला का आधिपत्य था। एक बार भगवान कृष्ण ब्राह्मण के वेश में हिमालय क्षेत्र में आए और उन्हें यह स्थान बेहद सुन्दर लगा। उन्होंने गंगू रमोला से इस रमणीक स्थान पर रहने के लिए जगह मांगी, लेकिन गंगू रमोला ने भगवान कृष्ण को यहां पर जगह देने से इनकार कर दिया। तब श्री कृष्ण के श्राप से गंगू रमोला की भेड़, बकरियां, गाय, भैस सब पत्थर में बदल गए। गंगू रमोला के रमोली गढ़ क्षेत्र में हाहाकार मच गया। पूरे क्षेत्र में भुखमरी फैल गई। इस पर गंगू रमोला की पत्नी जो धार्मिक प्रवृत्ति की थी, उसने भगवान को पुकारा। सातवें दिन ब्राह्मण वेशधारी भगवान कृष्ण ने सेम में गंगू रमोला को साक्षात दर्शन दिए।

गंगू रमोला ने भगवान कृष्ण से क्षमा मांगी और इसी स्थान पर रहने की विनती की। गंगू रमोला ने फिर इस स्थान पर भगवान का मंदिर बनाया। आज भी यहां नाग रूप में भगवान कृष्ण की पूजा होती है। साथ ही इस स्थान पर गंगू रमोला को भी पूजा जाता है। वहीं, एक और मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में जब भगवान कृष्ण कालिंदी नदी में गेंद लेने उतरे तो उन्होंने वहां रहने वाले कालिया नाग को भगाकर सेम मुखम जाने को कहा था। तब कालिया नाग ने भगवान कृष्ण से सेम मुखेम में दर्शन देने के लिए प्रार्थना की थी। कालिया नाग की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान कृष्ण यहां आकर स्थापित हो गए। तभी से यह मंदिर सेम मुखेम नागराजा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।


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