सनातन धर्म में गंगा मां को मोक्ष दायिनी कहा गया है। स्कंद पुराण में बताया गया है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य को 10 तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है और दैहिक, दैविक और भौतिक ताप भी दूर हो जाते हैं। हिंदू समाज में व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कार बताए गए हैं। इनमें सबसे आखिरी संस्कार मृत्यु के बाद किया जाने वाला अंतिम संस्कार है। गंगा नदी को भगवान कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त है। गंगा में अस्थियां प्रवाहित करने के धार्मिक और वैज्ञानिक कारण हैं। आईए जानते हैं दोनों कारण…
देवी भागवत पुराण में है वर्णन
देवी भागवत पुराण में गंगा नदी के पृथ्वी पर आगमन की कथा का वर्णन है, जिसके अनुसार भगवान राम के पूर्वज सगर के रानी वैदर्भी से उत्पन्न 60 हजार पुत्र कपिल मुनि के श्राप से मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। इससे सगर काफी दुखी हुए, जिन्हें देख उनकी दूसरी रानी शैव्या के पुत्र असमंजस ने अपने भाइयों के उद्धार के लिए गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने का तप किया पर बीच में ही उन्होंने देह त्याग दी। इसके बाद उनके पुत्र अंशुमान और फिर भागीरथ ने तपस्या की। अंत में भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए और उन्होंने भागीरथ की प्रार्थना पर गंगा को पृथ्वी पर रहने की आज्ञा दी। तभी श्रीकृष्ण ने गंगा को वरदान दिये थे।
देवी भागवत पुराण व श्रुति के अनुसार श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि भारत वर्ष में मनुष्यों द्वारा उपार्जित करोड़ों जन्मों का पाप गंगा की वायु के स्पर्श मात्र से नष्ट हो जाते हैं। स्पर्श और दर्शन की अपेक्षा गंगादेवी में स्नान करने से 10 गुना पुण्य होता है। श्रीकृष्ण ने कहा कि यदि किसी भी व्यक्ति का शव गंगा में प्रवाहित होगा तो जब तक उसकी एक भी अस्थि पानी में रहेगी, तब तक वह स्वर्ग में रहेगा।
यह है वैज्ञानिक कारण
अस्थि विसर्जन को गंगा नदी में विसर्जित करने का वैज्ञानिक कारण भी है। अस्थियों में कैल्शियम और फास्फोरस अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है, जो खाद के रूप में भूमि को ऊपजाऊ बनाने में सहायक होता है। ये दोनों तत्व पानी में रहने वाले जीवों के लिए पौष्टिक आहार का भी काम करते हैं। गंगा हमारे देश की सबसे बड़ी नदी है, इसके जल से भूमि का बहुत से भाग को सींचा जाता है।