हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड राज्य पुरातन काल से ही देवी-देवताओं का उद्गम स्थल माना जाता है। उत्तराखंड में कई ऐसे मंदिर एवं मठ हैं, जिसमें भगवान के अवशिष्ट आज भी मौजूद हैं। विश्व प्रसिद्ध तीर्थनगरी ऋषिकेश के प्राचीन भूतनाथ मंदिर का एक ऐसा ही रहस्य है, जिसमें भगवान शिव के पदचिह्न आज भी पाए जाते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं ऋषिकेश से 3 किमी की दूरी पर स्थित भूतनाथ मंदिर की। यहां भगवान शंकर ने भूतों एवं गणों की बारात के साथ विश्राम किया था।
मणिकुट पर्वत पर बना प्राचीन भूतेश्वर महादेव मंदिर अपनी पौराणिक कथाओं के लिए विश्वभर में प्रचलित है। इसके साथ ही भूतनाथ मंदिर प्राकृतिक सौंदर्यता एवं विचित्रता के लिए भी लोकप्रिय है। मान्यता है कि ज़ब भगवान शिव हिमालय से भूतों एवं गणों की बारात लेकर हरिद्वार कनखल के लिए निकले तो ससुराल पक्ष के लोग भयभीत न हों, जिसके चलते राजा दक्ष ने भगवान शिव को उनकी बारात संग मणिकूट पर्वत पर एक मंदिर में ठहराया था। बारात में शामिल सभी देवगण, भूत और जानवरों ने इसी मंदिर में एक रात बिताई थी, तब से इस मंदिर का नाम भूतनाथ पड़ गया था।
एक मान्यता के अनुसार, त्रेता युग में राम-रावण युद्ध के दौरान जब भगवान लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे, तब हनुमान संजीवनी बूटी का पहाड़ लेकर मणिकूट पर्वत पर बने भूतनाथ मंदिर के ऊपर से गए थे। भूतेश्वर महादेव मंदिर की पुराणों में कई कथाएं वर्णित हैं। इसमें भगवान के साक्षात्कार की अनुभूति भी की जा सकती है। इस मंदिर की स्थापना स्वामी कैलाशानंद द्वारा की गई थी। तभी से इस मंदिर में देश-विदेश से श्रद्धालु आकर भगवान भूतेश्वर महादेव के दर्शन करते हैं और उनका आशीष प्राप्त करते हैं। 14 मंजिल का बना भूतेश्वर महादेव मंदिर श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र भी रहा है। साथ ही इस मंदिर में आकर श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं भूतेश्वर महादेव पूर्ण करते हैं। चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा भूतनाथ मंदिर अपनी एक अलग पहचान भी रखता है।