Chamoli Anusuya Devi Mandir : चमोली के मंडल घाटी के घने जंगलों के बीच माता अनुसूया का भव्य मंदिर है, जोकि अपनी खूबसूरती के साथ निसंतान दंपतियों की मनोकामना पूरी करने के लिए देशभर में पहचान रखता है। यही नहीं, संतानदायिनी के रूप में प्रसिद्ध माता अनसूया के दरबार में सालभर निसंतान दंपति संतान कामना के लिए पहुंचते हैं। माना जाता है कि शक्ति सिरोमणि माता अनुसूया के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता है।
जिला मुख्यालय गोपेश्वर से 13 किलोमीटर दूर चोपता मोटर मार्ग पर मंडल के पास देवी अनुसूया का मंदिर स्थित है। यह मंदिर कत्यूरी शैली में बना है। मंदिर तक पहुंचने के लिए पांच किलोमीटर की पैदल दूरी तय करनी पड़ती है। अनुसूया मंदिर परिसर के पास पीछे की ओर दत्तात्रेय भगवान की एक प्राचीन शिला है। माता अनुसूया मंदिर के पुजारी विनोद सैमवाल ने बताया कि माता न सिर्फ निसंतान लोगों की कामनापूर्ण करती हैं, बल्कि देवता भी माता अनुसूया को नमन करते हैं। बता दें, प्रकृति की गोद में बसा यह स्थान चारों ओर से ऊंची-ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं से सुशोभित है।
अनुसूया मंदिर के पुजारी लक्ष्मी प्रसाद सैमवाल ने बताया कि यह स्थान बद्री और केदारनाथ के बीच स्थित है। उन्होंने बताया कि महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनुसूया की महिमा जब तीनों लोक में होने लगी तो पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के अनुरोध पर परीक्षा लेने ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वी लोक पहुंचे थे। साधु भेष में तीनों ने अनुसूया के सामने निर्वस्त्र होकर भोजन कराने की शर्त रखी थी। दुविधा की इस घड़ी में जब माता ने अपने पति अत्रि मुनि का स्मरण किया तो सामने साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखाई दिए। इसके बाद उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर तीनों साधुओं पर छिड़का तो वह छह महीने के शिशु बन गए थे। इसके बाद माता ने शर्त के मुताबिक, न सिर्फ उन्हें भोजन कराया, बल्कि स्तनपान भी कराया था।
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वहीं, पति के वियोग में तीनों देवियां पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती दुखी होकर पृथ्वी लोक पहुंचीं। उन्होंने माता अनुसूया से क्षमा याचना की। फिर तीनों देवों ने भी अपनी गलती को स्वीकार कर माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया। यही नहीं, देवों ने माता को दो वरदान दिए। पहले वरदान से उन्हें दत्तात्रेय, दुर्वासा ऋषि और चंद्रमा का जन्म हुआ तो दूसरा वरदान माता को किसी भी युग में निसंतान दंपति की कोख भरने का दिया।
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