Chaitra Navratri 2024: हरिद्वार यानि हरि का द्वार और इसके दोनों ओर विशाल पर्वतों पर स्थित है मां भगवती के दो सिद्ध मंदिर। इनमें से एक मनसा देवी मंदिर शिवालिक पर्वत पर तो दूसरा मां चंडी देवी का मंदिर नील पर्वत पर स्थित है। असुरों का संहार करने वाली मां चंडी, देवताओं के प्राणों की रक्षा करने वाली मां चंडी, भगवान राम के प्राण बचाने वाली मां चंडी का मंदिर पुराणों में वर्णित है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां चंडी देवी के मंदिर में भक्तों का तांता लगा है। भक्त मां चंडी की आराधना कर रहे है और अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना कर रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि में मां चंडी देवी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
हरिद्वार का पौराणिक मंदिर मां चंडी देवी का मंदिर सिद्ध पीठ है। ऐसा माना जाता है कि मां भगवती यहां पर अपने रौद्र रूप यानि चंडी रूप में साक्षात विराजती हैं। मां चंडी देवी यहां कैसे विराजीं, इसकी पुराणों में कई कहानियां हैं। पुराणों के अनुसार, जब देव लोक में असुरों का अत्याचार बढ़ने लगा तो देवताओं ने मां भगवती की स्तुति की। इसके बाद मां चंडी रूप में एक खंभ से यहां प्रकट हुईं और असुरों का संहार कर देवताओं की रक्षा की। मां भगवती ही इस जगत को दैत्यों और दानवों से बचाने के लिए चंडी रूप में अवतरित हुई थीं।
मां चंडी देवी मंदिर परमार्थ ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी महंत रोहित गिरी का कहना है कि पौराणिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब देवासुर संग्राम हुआ तो इंद्र आदि देवताओं को चंड, मुंड, शुंभ, निशुंभ आदि दैत्य द्वारा इंद्रलोक से उनको हरा दिया गया और उनको हटा करके उनका राज्य छीन लिया था। इस पर इंद्र आदि देवताओं ने भगवान ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी की शरण ली और उनसे अपना राज्य वापस दिलवाने की प्रार्थना की। इस पर ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी द्वारा इंद्र को यह बताया गया कि आप मां भगवती की शरण में जाओ और उनकी प्रार्थना करो। वही आपका उद्धार कर सकती हैं।
महंत रोहित गिरी ने बताया कि इंद्र आदि देवताओं ने मां भगवती की तपस्या की। तपस्या से मां भगवती प्रसन्न हुईं। मां ने देवताओं के कष्ट दूर करने के लिए धरती, आकाश, पाताल पर जितने भी देवता थे, उन सबकी शक्ति एक जगह एक कुंज के रूप में समाहित की। इसके बाद इस दिव्य स्थल पर आकर एक खंभ के रूप में मां भगवती विराजमान हुईं। भगवती के यहां दो रूप हैं। रुद्र चंडी और और मंगल चंडी। मां भगवती ने रुद्र चंडी का रूप धारण करके चंड, मुंड, निशुंभ, शुंभ आदि दैत्यों का संहार किया था। इसके बाद मां भगवती वापस इसी स्थान पर आकर के बीच वाले स्थान पर बैठ गईं। लेकिन, जब उनका क्रोध शांत नहीं हुआ तो इंद्रा आदि देवताओं ने मां भगवती की पूजा की। उनका मंगल गान गाया। इसके बाद उनका नाम मंगल चंडी पड़ा।
उन्होंने बताया कि इस स्थान पर अश्विन की नवरात्रि में अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी के दिन को चंडी चौदस के रूप में यहां मनाया जाता है। इन दिनों में जो भी व्यक्ति यहां पर आकर दर्शन-पूजा इत्यादि करता है, उसको मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। देश-विदेश से भी यहां श्रद्धालु आते हैं। कई लोग यहां पर मन्नत मांगते हैं और मन्नत के रूप में माता को चुन्नी में गांठ बांधकर जाते हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु यहां आकर चुन्नी को खोलकर माता के चरणों में अर्पित करते हैं। महंत रोहित गिरी ने कहा कि भगवती शक्ति का स्वरूप हैं और सभी के साथ शक्ति के स्वरूप में ही रहती हैं।
वैसे तो मां चंडी के दरबार में पूरे साल ही भक्तों का तांता लगा रहता है। लेकिन, नवरात्र के दौरान यहां दूर-दूर से काफी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। यहां आने वाला श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां उनकी हर मुराद पूरी होती है। वह मां से जो भी मांगते हैं, सब कुछ मिलता है।