Chandrashekhar Singh Government: ये बात है 1989 से 1991 की… जब देश में 3 साल तक कोई स्थिर सरकार नहीं बन सकी। चंद्रशेखर, वीपी सिंह और नरसिम्हा राव देश के पीएम बने, लेकिन जैसे ही चंद्रशेखर की सरकार गिरी, उसके 74 दिन बाद राजीव गांधी की हत्या हो गयी।
1989 में जनता दल को मिली 85 सीटें
साल 1989 का लोकसभा चुनाव भारत की राजनीति में सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। इस चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नही मिला। कांग्रेस 207 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आई, लेकिन फिर भी उसकी सरकार नहीं बन सकी। वहीं, जनता दल को 85 सीटें मिली। भाजपा और लेफ्ट पार्टियों के समर्थन से जनता दल की सरकार बन गयी और विश्वनाथ सिंह को पीएम बनाया गया।
भाजपा ने जनता दल को दिया समर्थन लिया वापस
जनता दल ने जब लालकृष्ण आडवाणी का रथ रोका, तो भाजपा ने जनता दल को दिया समर्थन वापस ले लिया, जिससे सरकार गिर गयी। एक दिन रात करीब 11 बजे रोमेश भंडारी ने चंद्रशेखर को कॉल करके कहा कि क्या आप इस समय मेरे घर कॉफी पीने आ सकते हैं। चंद्रशेखर ये बात समझ गये और रोमेश के घर पहुंच गये, जहां राजीव गांधी पहले से ही बैठे हुए थे। राजीव गांधी ने बताया कि देश की स्थिति बहुत खराब है। हमें कुछ करना होगा। चंद्रशेखर ने राजीव गांधी की बात पर हां में अपना सिर हिला दिया।
राजीव गांधी और चंद्रशेखर की रोमेश के घर के मुलाकात के बाद आरके धवन के घर दोनों ने मुलाकात की और राजीव गांधी ने चंद्रशेखर को कहा कि इस समय चुनाव करवाना देश के हित में नहीं है। इसलिए आप अपनी सरकार बनाइए। हम समर्थन करेंगे।
राजीव गांधी के कहने पर चंद्रशेखर बने पीएम
चंद्रशेखर ने पहले मना कर दिया, बाद में राजीव गांधी के दोबारा बोलने पर मान गये और 10 नवंबर 1991 को चंद्रशेखर देश के 9वें प्रधानमंत्री बन गये। उन्होंने अफसरों को स्पष्ट कह दिया कि छोटी-छोटी बातों पर मेरे पास न आया करें और छूट दे दी कि आप अपनी समझ के आधार पर फैसला ले सकते हैं।
ये बात है 1991 की, जब चंद्रशेखर सिंह पीएम थे। राजीव गांधी के घर नेताओं का आना जाना लगा रहता था। इस बीच राजीव गांधी के घर के बाहर चाय की दुकान पर दो लोग चाय पी रहे थे। वे दोनों हरियाणा से दिल्ली आये थे। दोनों CID से थे। इस बात का पता जब राजीव गांधी को चला तो कांग्रेस के नेताओं ने इस बात को मुद्दा बना लिया और पीएम चंद्रशेखर पर आरोप लगाया कि वे राजीव गांधी की मुखबिरी करा रहे है।
चंद्रशेखर ने अपनी किताब ‘जीवन जैसा जिया’ में लिखते हुए बताया कि जब मुझे पता चला कि राजीव गांधी के घर के बाहर हरियाणा के CID के दो सिपाही मिले हैं तो मैंने जांच के आदेश दिये और हरियाणा के सीएम ओमप्रकाश चौटाला को इस पर कार्रवाई करने को कहा। मेरे इस निर्णय से कांग्रेस पार्टी के नेता संतुष्ट हो गये। फिर उसके बाद शाम की पार्टी में राजीव गांधी से मुलाकात हुई, तब सब कुछ नॉर्मल था।
कांग्रेस ने संसद का किया बहिष्कार
6 मार्च 1991 को चंद्रशेखर को पता चला कि कांग्रेस सरकार राजीव गांधी पर जासूसी करने का आरोप लगाकर संसद का बहिष्कार करेगी। वे जब वहां पहुंचे तब कांग्रेस पार्टी ने संसद का बहिष्कार कर चुकी थी। तब चंद्रशेखर से देवीलाल ने कहा कि राजीव गांधी मुझे बुला रहे हैं, मैं जांऊ? तब चंद्रशेखर ने कहा कि आप जरूर जाइए और अपने लिए प्राइम मिनिस्टरशिप की बात करके आइएगा। अब मेरे दिन इस पद के लिए पूरे हो गए हैं।
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चंद्रशेखर ने लोकसभा में अपना भाषण खत्म करने के बाद इस्तीफे का ऐलान कर दिया। कांग्रेस पार्टी को इस बात की खबर ही नहीं थी कि जासूसी के इस आरोप पर चंद्रशेखर पीएम पद से इस्तीफा दे देंगे। 10 नवंबर 1991 को सरकार बनी और 116 दिन में ही गिर गयी, लेकिन तुरंत चुनाव नहीं किया जा सकता था। इसलिए चंद्रशेखर पीएम बने रहे। फिर देश में चुनाव हुआ और नई सरकार बन गई। 21 जून को चंद्रशेखर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
राजीव गांधी 1991 में 21 मई को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में चुनावी रैली के लिए गए थे। उस रैली में एक महिला ने अपने शरीर में बम बांधकर राजीव गांधी के पास पहुंची। इस दौरान बम ब्लास्ट में राजीव गांधी की मौत हो गई। राजीव गांधी की हत्या के बाद जासूसी कांड का क्या हुआ, कौन दोषी था, इसका पता नहीं चल सका।
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