Uttarakhand Forest Fire: उत्तराखंड में हर साल जंगलों में आग लगने की घटनाएं सामने आती हैं। प्रशासन आग की रोकथाम के लिए एक्शन प्लान भी तैयार करता है, लेकिन ये प्लान धरे के धरे रह जाते हैं। वनों में लगने वाली आग को बुझाने के लिए वन विभाग ने एसडीआरएफ, एनडीआरएफ और सेना की मदद ली, फिर भी आग पर काबू नहीं पाया जा सका।
29 लोगों ने गंवाई जान
उत्तराखंड में हर साल 2400 हेक्टेयर से अधिक जंगल आग की लपटों का शिकार होते हैं। अगर पिछले 10 साल की बात करें तो आग की वजह से 29 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जबकि 79 लोग झुलस गए।
पिछले साल तीन लोगों की हुई मौत
पिछले साल 2023 में वनाग्नि की 773 घटनाओं में 933 हेक्टेयर जंगल जल गए। इससे तीन लोगों की मौत हो गई। वहीं, तीन लोग घायल हो गए। इस साल जंगल में आग लगने की कुल 1144 घटनाएं सामने आईं, जिसमें 1574 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र प्रभावित हुए। इस दौरान 6 लोगों की जान चली गई।
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जैव विविधता को पहुंचा नुकसान
जंगलों में आग लगने के पीछे की मुख्य वजह जनता और वन विभाग के बीच संवाद का न होना माना जाता है। विभाग जनता को यह समझाने में विफल रहा है कि जंगल उनके हैं। उन्हें जंगल को अपना समझना चाहिए। आग से जैव विविधता को भी काफी नुकसान पहुंचता है। कई पेड़-पौधे और वन्यजीव आग में झुलस जाते हैं।
वन विभाग ने दर्ज किए 434 मुकदमे
वन विभाग ने जंगल में आग लगाने के आरोप में इस साल 434 मुकदमे दर्ज किए हैं। इनमें 65 नामजद तो 369 अज्ञात हैं। कुछ लोगों ने यह भी आरोप लगाया है कि जंगल में आग लगाने के पीछे वन विभाग का भी हाथ है। जंगलों को लगातार काटा जा रहा है। इस पर पर्दा डालने के लिए आग लगाई जाती है, ताकि कोई भी सबूत न मिले।
जंगलों को आग से बचाने के लिए बनाए गए 1438 क्रू स्टेशन
वन विभाग की मानें तो जंगलों को आग से बचाने के लिए 1438 क्रू स्टेशन बनाए गए हैं। इनमें 569 गढ़वाल और 644 कुमाऊं में हैं। वहीं, 225 क्रू स्टेशन वन्यजीव क्षेत्र में हैं। इसके साथ ही, 174 वॉच टावर भी बनाए गए हैं। विभाग ने बार-बार जंगल में आग लगाने वालों पर गैंगस्टर एक्ट लगाने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही, वन संपदा को हुए नुकसान की भरपाई भी इन लोगों से की जाएगी। इन पर लोक और निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम की तहत कार्रवाई की जाएगी।
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