Kedarnath Dham: बाबा केदारनाथ धाम और बाबा बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के अवसर पर ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की उपस्थिति अनिवार्य होती है। इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती आज हरिद्वार से केदारनाथ के लिए रवाना हुए। वे सबसे पहले बाबा केदारनाथ के कपाट खुलवाएंगे। उसके बाद बाबा बद्रीनाथ के कपाट खुलवाने बद्रीनाथ जाएंगे।
सरकार से की खास अपील
हरिद्वार से केदारनाथ जाते हुए शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सरकार से अपील करते हुए कहा कि चार धाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को सरल व सुगम व्यवस्था मिलनी चाहिए। इस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में कई राज्य ऐसे हैं, जो कि लोगों को बुलाने के लिए तरह-तरह से आकर्षित करते हैं। उसके बावजूद भी लोग वहां नहीं जाते, लेकिन भगवान और चार धाम की इतनी कृपा है कि बिना बुलाए ही देश के हर कोने से लोग उत्तराखंड पहुंचते हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि उनके लिए उचित व्यवस्था करें और उन्हें किसी भी तरह की परेशानी न हो, इसका भी ध्यान सरकार को देना चाहिए।
चार धाम यात्रा में आने वाले श्रद्धालुओं से की अपील
इसी के साथ, चार धाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं से अपील करते हुए शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि चार धाम यात्रा पर आ रहे श्रद्धालुओं को यह अपने जहन में डाल लेना चाहिए कि वह देव भूमि में आध्यात्मिक यात्रा पर आ रहे हैं, न कि मनोरंजन यात्रा में… अगर इस दौरान उन्हें कष्ट भी होता है तो वह भी महसूस नहीं होगा।
‘चार धाम के महत्व को समझकर ही यात्रा करें’
शंकराचार्य ने कहा कि हमारे ग्रंथों में कहा जाता है कि तीर्थ के दर्शन करने से मनुष्य द्वारा किए गए पाप खत्म होते हैं, लेकिन अगर तीर्थ में ही कोई व्यक्ति पाप करता है तो उसका कहीं भी पश्चाताप नहीं है। इसलिए चार धाम यात्रा और उसके महत्व को समझ कर ही यात्रा पर आएं।
टोकन व्यवस्था पर उठाए सवाल
सरकार द्वारा चार धाम में श्रद्धालुओं को असुविधा से बचाने के लिए की गई टोकन व्यवस्था पर बोलते हुए शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि यह व्यवस्था भले ही सरकार श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कर रही हो, लेकिन इससे श्रद्धालुओं को और परेशानी का सामना करना पड़ेगा। लाइन में लगने से श्रद्धालु एक तपस्या की तरह ही भगवान के दर्शन करने जाता था, लेकिन इस टोकन व्यवस्था से श्रद्धालुओं को कई समस्याएं होंगी।