Haldwani News: टाइगर ऑफ द रिवर के नाम से पहचान रखने वाली महाशीर मछली अब देश की नदियों और तालाबों से धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है। पूरे देश में महाशीर मछली की 15 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसमें उत्तराखंड की मात्र एक गोल्डन महाशीर मछली है, जो अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है। ऐसे में महाशीर मछली को संरक्षित करने के लिए भीमताल स्थित शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय के वैज्ञानिक पिछले कई सालों से काम कर रहे हैं, जहां वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता मिली है। वे तकनीक के जरिए महाशीर मछली का प्रजनन कर रहे हैं। अनुसंधान केंद्र ने महाशीर मछली प्रजनन के क्षेत्र में पेटेंट भी हासिल किया है।
भीमताल स्थित शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक मोहम्मद शाहबाज अख्तर ने बताया कि भीमताल स्थित अनुसंधान केंद्र द्वारा महाशीर मछली को ब्रूडस्टॉक रेअरिंग फैसिलिटी के माध्यम से प्रजनन करने का काम किया जा रहा है। यह देश का पहला प्रजनन केंद्र है।
वरिष्ठ वैज्ञानिक मोहम्मद शाहबाज अख्तर ने बताया कि उत्तराखंड की महत्वपूर्ण प्रजातियों में एक गोल्डन महाशीर मछली उत्तराखंड के नदियों और जलाशय से विलुप्त हो चुकी है। इसको संरक्षित करने का काम किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पहले विभाग द्वारा मैनुअल तरीके से प्रजनन और संचय करने की कोशिश की गई, लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली। इसके बाद नई तकनीक के माध्यम से पिछले 8 सालों से रिसर्च किया जा रहा है, जहां विभाग को सफलता प्राप्त हुई है और नई तकनीकी के माध्यम से विलुप्त हो रही गोल्डन महाशीर के अलावा अन्य प्रजातियों के महाशीर मछलियों के प्रजनन का काम किया जा रहा है। विभाग को महाशीर प्रजनन के क्षेत्र में भारत सरकार से पेटेंट मिला है।
शाहबाज अख्तर ने बताया कि वर्तमान समय में उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए यहां की नई तकनीकी के माध्यम से गोल्डन महाशीर मछली का सबसे अधिक प्रजनन किया जा रहा है। तकनीक के माध्यम से मछली को बड़ा कर उसके अंडे के माध्यम से अन्य मछलियों को तैयार कर जलाशय और नदियों में छोड़ने का काम किया जा रहा है। इसके अलावा यहां पर प्रजनन किए महाशीर मछलियों के अन्य प्रजातियों को दूसरे राज्यों तक भेजा जाता है, जिससे कि इन मछलियों को बचाया जा सके।
गोल्डन महासीर एक साइप्रिनिड है, जिसे मनोरंजक, विरासत, सांस्कृतिक और खाद्य मूल्यों के आधार पर हिमालय उपमहाद्वीप के ऊपरी मत्स्य पालन में एक प्रमुख प्रजाति माना जाता है। इसकी सबसे कठिन लड़ाई वाली मछली में से एक होने की प्रतिष्ठा है, जो दुनिया भर के फिशिंग करने वाले और मछुआरों को आकर्षित करती है। पर्यावरण-पर्यटन के लिहाज से स्थानीय लोगों के लिए आजीविका के पर्याप्त अवसरों की उच्च क्षमता को प्रकट करती है। हालांकि, प्रदूषण, पर्यावरणीय क्षरण, सिंचाई परियोजनाओं और अंधाधुंध मछली पकड़ने जैसे विभिन्न कारणों के चलते इसकी आबादी में कई दशकों में तेजी से गिरावट आई है, जिसको देखते हुए विभाग द्वारा संरक्षित करने का काम किया जा रहा है।