Vasuki Nag : गुजरात में साल 2005 में मिले जीवाश्म को लेकर चौंकाने वाला सच सामने आया है। आईआईटी रूड़की के प्रोफेसर सुनील बाजपेयी और पोस्ट-डॉक्टरल फेलो देबजीत दत्ता ने सांप की एक प्राचीन प्रजाति से पर्दा उठाया है। यह खोज संस्थान की महत्वपूर्ण जीवाश्म खोजों की बढ़ती सूची में शामिल हो गई है। गुजरात के कच्छ में साल 2005 में मिले जीवाश्म को लेकर चौंकाने वाला सच सामने आया है।
हाल ही में हुए शोध में पता चला है कि ये दुनिया के सबसे बड़े सांपों में से एक के जीवाश्म हैं। अब सवाल उठ रहा है कि क्या वैज्ञानिकों ने वासुकी नाग के अवशेष ढूंढ लिए हैं? वैज्ञानिकों का मानना है कि ये दुनिया के अब तक के सबसे बड़े सांपों में से एक था। इसे वासुकी इंडिकस नाम दिया गया है। प्रोफेसर सुनील बाजपेयी ने श्रेष्ठ उत्तराखंड संवाद्दाता प्रिंस शर्मा से खास बातचीत में बताया कि माइथोलॉजी में भगवान शिव के गर्दन में लिपटे सांप वासुकी के नाम से प्रेरित होकर नाम रखा है। दोनों सांपों का आपस में संबंध नहीं है। सांप की लंबाई 11-15 मीटर के बीच हो सकती है। उन्होंने कहा कि आज लोग इसे समुद्र मंथन और वासुकी नाग से जोड़कर देख रहे हैं। आस्था का सम्मान है, लेकिन प्रामाणिकता के आधार पर दोनों में संबंध नहीं है, सिर्फ नाम रखने के लिए वासुकी नाम दिया गया है। यह सांप अन्य सांपों से अलग है।
रूडकी IIT के अर्थ साइंस विभाग के वैज्ञानिक प्रोफेसर सुनील बाजपेई व उनकी टीम ने वर्ष 2005 में गुजरात के कच्छ में कोयले की खुदाई के दौरान निकले एक जीवाश्म पर शोध किया। प्रोफेसर ने 2023 से शोध करना शुरू किया था। शोध में यह पाया गया कि यह दुर्लभ प्रजाति का सांप का जीवाश्म है, जो लगभग 47 मिलियन वर्ष पुराना है, जो गुजरात के कच्छ क्षेत्र में एक कोयले की खान में मिला था। सांप की यह विशेषता है कि यह दुनिया के सबसे बड़े सांपों में से एक है। जब यह सांप जिंदा रहा होगा तो इसकी लंबाई लगभग 15 मीटर रही होगी और इसका वजन तकरीबन एक हजार किलोग्राम होगा। यह सांप इस तरह का था, जैसे आज के अजगर और एनाकोंडा सांप हैं। इससे पता चलता है कि भारत में सांपों का इतिहास बहुत ही पुराना है। वैज्ञानिकों ने इसका नाम वासुकी नाम दिया है।