Rudraprayag Lord Shiva Connection : अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के संगम पर रुद्रनाथ मंदिर स्थित है। यहां भक्त अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं। इस स्थान पर नारद शिला है, जहां पर नारद मुनि ने सौ वर्षों तक तपस्या की थी। इसके बाद भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर संगीत का ज्ञान दिया था। साथ ही प्रसाद स्वरूप वीणा दी थी। इसके बाद नारद मुनि ने भगवान शंकर से प्रार्थना की कि वे इस स्थान पर अपने सपरिवार के साथ निवास करें। उनकी विनती पर भगवान शंकर ने सपरिवार इस स्थान पर निवास किया।
रुद्रप्रयाग में रुद्रनाथ मंदिर के पुजारी स्वामी धर्मानंद ने बताया कि रुद्रप्रयाग भगवान शिव के रुद्र रूप के नाम से जाना जाता है। रुद्रप्रयाग वह स्थान भी है, जहां महाभारत के युद्ध में अपने भाइयों की हत्या के बाद पांडव पश्चाताप के लिए आए थे। इसके बाद वे स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गए थे। पुराणों के अनुसार, इस संगम का नाम ‘रुद्र’ से लिया गया है, जो भगवान शिव का एक रूप है। इसलिए, रुद्रप्रयाग के आसपास के क्षेत्र में कई शिव मंदिर हैं। महाकाव्यों के अनुसार, भगवान शिव ऋषि नारद को आशीर्वाद देने के लिए यहां प्रकट हुए थे।
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स्वामी धर्मानंद ने स्कंद पुराण केदारखंड में बताया गया है कि पांडव जब महाभारत के युद्ध में विजयी हो गए थे तो उसके बाद अपने कौरव भाइयों की हत्या का पश्चाताप करने के लिए अपना राजपाट त्याग दिया था और केदारनाथ में मंदाकिनी नदी के तट पर पहुंच गए थे। स्वर्गारोहिनी के जरिए पांडवों ने इसी स्थान से स्वर्ग को प्रस्थान भी किया था। केदारखंड में बताया गया है कि भगवान शिव की महर्षि नारद ने रुद्रप्रयाग में ही एक पांव पर खड़े होकर उपासना की थी। महर्षि नारद की उपासना से भगवान शिव प्रसन्न हो गए थे और रुद्र रूप में उन्होंने उन्हें अपने दर्शन दिए थे। रुद्र रूप में भगवान शिव से महर्षि नारद ने संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी। भगवान शिव ने उन्हें वीणा भी तभी प्रदान की थी। उसी समय से इस स्थान को रुद्रप्रयाग के नाम से जाना जाने लगा।