Uttarakhand Kranti Dal: उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय मीडिया प्रभारी मोहित डिमरी सहित बड़ी संख्या में प्रदेश भर के युवाओं ने एक साथ इस्तीफा दे दिया है। युवाओं का मत है कि उत्तराखंड क्रांति दल के शीर्ष नेतृत्व की कार्यशैली और पहाड़ के मुद्दों पर उनकी चुप्पी से क्षुब्ध होकर उन्होंने पार्टी छोड़ने का मन बनाया है।
उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय मीडिया प्रभारी के पद और प्राथमिकी सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद मोहित डिमरी ने कहा कि उत्तराखंड क्रांति दल की राज्य निर्माण में बड़ी भूमिका और इसकी क्षेत्रीय सोच को देखते हुए पार्टी की सदस्यता ली थी, लेकिन अब यूकेडी उस सोच और उस विचार की पार्टी नहीं रही, जिस विचार को डीडी पंत, उत्तराखंड के गांधी इन्द्रमणि बडोनी जी, पूर्व विधायक जसवंत बिष्ट जी, पूर्व विधायक विपिन त्रिपाठी ने आगे बढ़ाया था। डिमरी ने कहा कि प्रदेश के गम्भीर मुद्दों को लेकर पार्टी नेतृत्व की चुप्पी दल को रसातल पर ले गई और आज जनता का भरोसा दल से पूरी तरह खत्म हो चुका है।
उत्तराखंड क्रांति दल के छात्र प्रकोष्ठ उत्तराखंड स्टूडेंट्स फेडरेशन के केंद्रीय अध्यक्ष लूशुन टोडरिया ने कहा कि राज्य आंदोलन के शहीदों के सपनों को पूरा करने के लिए हम दल से जुड़े और दल को आगे बढ़ाने का काम कर रहे थे, लेकिन जार्ज एवरेस्ट जैसे गम्भीर मुद्दे पर हमें पार्टी का कोई सहयोग नहीं मिला और फिर जब अपने स्तर पर हमने मूल निवास, भू-कानून जैसे मुद्दे उठाकर प्रदेश भर में बड़ा आंदोलन किया।
उन्होंने कहा कि इसमें भी उत्तराखंड क्रांति दल के शीर्ष लीडरों को युवाओं के नेतृत्व से असुरक्षा की भावना हुई। इसके उपरांत हर स्वाभिमान महारैली में यूकेडी का एक सूत्रीय एजेंडा मंच हथियाने का रहता था न कि जनता के साथ खड़े होकर मुद्दों की लड़ाई लड़ने का। इससे दुःखी होकर पद और पार्टी से इस्तीफा देना पड़ रहा है, लेकिन पहाड़ के हित की लड़ाई को और भी जोरदार तरीके से लड़ा जाएगा।
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लूशुन टोडरिया ने कहा कि प्रदेश और खासकर पहाड़ी समाज की स्थिति को देखते हुए कॉर्पोरेट की ऊंचे पद की नौकरी छोड़कर उत्तराखंड क्रांति दल से केंद्रीय प्रवक्ता के रूप में जुड़े युवा प्रांजल नौडियाल ने कहा कि प्रदेश के अति आवश्यक मुद्दों जैसे मूल निवास, सशक्त भू-कानून, बेरोज़गारी, परिसीमन और पहाड़ी समाज की उपेक्षा को लेकर वे उक्रांद से जुड़े थे, लेकिन इन मुद्दों को छोड़कर पार्टी की निम्न स्तर की राजनीति, गुटबाजी और पार्टी के जन सरोकारों के विषयों पर मौन रहने से क्षुब्ध होकर वे पार्टी छोड़ रहे हैं। उन्होंने आशंका जताई कि पार्टी पर सत्तारूढ़ दल का अंदरखाने प्रभाव होने से इनकार नहीं किया जा सकता।
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