Loksabha Election 2024 : उत्तराखंड की पांच सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के स्टार प्रचारक सीट दर सीट ताबड़तोड़ प्रचार करते रहे। चुनाव आयोग ने भी वोटिंग परसेंटेज बढ़ाने के लिए हर हथकंडे अपनाए। जागरुकता के साथ-साथ वोटरों को तमाम सुविधाओं की व्यवस्था की गई। मार्डन बूथ बनाए गए। गर्भवती महिलाओं के लिए पालकी की व्यवस्था की गई, लेकिन न तो सियासी दलों के लुभावने वादे और न ही चुनाव आयोग की रणनीतियां पब्लिक का मिजाज बदल पाईं। जनता ने सभी चमक-दमक को दरकिनार करते हुए ये स्पष्ट मैसेज दिया कि अब सिर्फ सियासी शोर और गाजे-बाजे के बलबूते काम नहीं होंगे, बल्कि सियासी दलों को पब्लिक के सरोकार की बातें करनी होंगी।
क्या इस चुनाव में ऐसे मुद्दों का जिक्र ही नहीं किया गया, जो पब्लिक के सरोकार से जुड़े हों? क्या पब्लिक को ये अहसास हो चुका है जिन बातों का चुनाव में जिक्र किया जा रहा था, वो बातें उनकी जिंदगी से जुड़ी ही नहीं थीं और इसीलिए जनता ने चुनाव आयोग की कड़ी मशक्कत के बावजूद भी वोटिंग को नकार दिया। उत्तराखंड में वोटिंग परसेंटेज को बढ़ाने के लिए चुनाव आयोग ने तमाम तरह के रंग बिखेरे, लेकिन मुहिम बेरंग नजर आई। एक दो नहीं, बल्कि 25 जगहों पर जनता ने चुनाव का बहिष्कार किया।
पहाड़ वोटिंग का भूस्खलन 5 प्रतिशत के करीब रहा। ऐसे में कई सवाल खड़े होते हैं। क्या इस लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के तमाम वादों और दावों से जनता का भरोसा उठ चुका है? क्या सरकार से कम हुई पब्लिक रुचि या विपक्ष की बातों पर नहीं रहा भरोसा? क्या वोटिंग परसेंट में आई गिरावट बड़ा संदेश दे रही है और घटा हुआ वोट परसेंटेंज किसकी लुटिया डुबोएगा?
उत्तराखंड की पांच सीटों पर 19 अप्रैल को हुई वोटिंग 2019 के लोकसभआ चुनाव के मुकाबले तकरीबन पांच फीसदी कम रही। 2019 के लोकसभ चुनाव में पहाड़ पर 61 फीसदी वोटिंग हुई थी, लेकिन 2024 में ये आंकड़ा घटकर 56 फीसदी के आस-पास रह गया। सीट दर सीट बात करें तो 2019 के चुनाव में टिहरी गढ़वाल सीट पर 58.87% वोटिंग हुई थी, लेकिन 2024 के चुनाव में 51.28% वोट ही पड़ पाए। गढ़वाल सीट पर 2019 के चुनाव में 55.17% वोटिंग हुई थी, लेकिन अबकी बार ये संख्या घटकर 48.79% रह गई। 2019 के चुनाव में अल्मोड़ा सीट पर 52.31% वोटिंग हुई तो 2024 में ये आंकड़ा अल्मोड़ा में 44.43% रह गया। नैनीताल उधमसिंह नगर में पिछले चुनाव में 68.97 प्रतिशत वोटिंग का आंकड़ा था, लेकिन 2024 में यहां भी 59.39% वोटिंग हो पाई। हरिद्वार सीट पर पिछली बार 69.18% वोटिंग हुई तो इस बार महज 59.12% वोटिंग हुई। यानी कि हर सीट पर 5 प्रतिशत से लेकर 10 प्रतिशत के आसपास वोटिंग में गिरावट आई। सियासी दलों की बात करें तो इस वोटिंग परसेंट को लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों के अपने-अपने मंसूबे हैं। दोनों तरफ से दावा भी किया जा रहा है। एक तरफ इसे परिवर्तन की आहट बताई जा रही है तो दूसरी तरफ इसे सफाए का संकेत बताया जा रहा है।
अब सवाल ये है कि वोटिंग परसेंटेज के इस पतन का असर किस सियासी दल पर पड़ने वाला है। सियासी पंडितों का मानना है कि इतने बड़े पैमाने पर वोटिंग परसेंटेज में आई गिरावट एंटी इनकंबेसी के रूप में भी देखी जा सकती है। क्योंकि, अगर उत्तराखंड की पांच सीटों की बात करें तो हर सीट पर बीजेपी का कब्जा है। हालांकि, पहाड़ में इस गिरावट के लिए और भी कारण दिए जा रहे हैं, लेकिन पब्लिक की तरफ से चुनाव का खुला बहिष्कार और अपने सरोकार को लेकर बुलंद आवाज पहाड़ पर कुछ बड़ा संदेश दे रही है।