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सिद्धपीठ होने पर भी कालीशिला मंदिर में सुविधाएं नहीं, जानिए महत्व

Kalishila Temple | Uttarakhand Kalishila Temple |

रुद्रप्रयाग में स्थित प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां कालीशिला मंदिर में दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं। कहा जाता है कि इस शिला में देवी के 64 यंत्र हैं और मां दुर्गा को इन्हीं यंत्रों से शक्ति मिली थी। इसके बाद उन्होंने शुम्भ, निशुम्भ और रक्तबीज दानवों का वध किया था। कालीशिला से बाबा केदारनाथ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ के साथ ही चन्द्रशिला के भी दर्शन होते हैं। भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती से लेकर धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज और पूर्व वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत के अलावा कई नेता यहां आ चुके हैं। इसके बावजूद यहां बिजली और शौचालय की उचित व्यवस्था नहीं है, जो सरकार के मठ-मंदिरों को विकसित करने के दावों की पोल खोल रहे हैं।

स्कन्दपुराण के केदारखंड में 62वें अध्याय में मां काली के मंदिर का वर्णन है। कालीमठ मंदिर से 8 किलोमीटर की खड़ी ऊंचाई पर एक दिव्य शिला है, जिसे कालीशिला के नाम से जाना जाता है। इस शिला में आज भी देवी काली के पैरों के निशान मौजूद हैं। कालीशिला के बारे में मान्यता है कि मां भगवती ने शुम्भ, निशुम्भ और रक्तबीज दानव का वध करने के लिए कालीशिला में 12 साल की बालिका का रूप धारण किया था। कहा जाता है कि इस जगह पर 64 योगिनियां विचरण करती हैं। दैत्यों का वध करने के बाद मां काली इसी जगह पर अंर्तध्यान हो गई थीं। आज भी यहां पर रक्तशिला, मातंगशिला और चंद्रशिला स्थित है। धर्म के जानकारों का भी मानना है कि उत्तराखंड का ये वह शक्तिपीठ है, जिसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती।

कालीशिला मंदिर समुद्र तल से 3,463 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कालीशिला मंदिर में सालभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मां काली को ज्ञान की देवी कहा जाता है। यहां आकर साधना करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसलिए, यहां सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है।

 मंदिर पहुंचने के लिए तीन पैदल मार्ग, कोई भी ठीक नहीं

कालीशिला पहुंचने के लिए वर्तमान समय में ब्यूंखी, जग्गी और राऊलैंक तीन पैदल मार्ग हैं, जो दयनीय हालत में हैं। पैदल मार्गों पर शौचालय, पेयजल से लेकर बिजली तक की कोई व्यवस्था नहीं है। भक्त किसी तरह से तीन किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद कालीशिला तो पहुंच जाता है। लेकिन, यहां की स्थिति देखकर हैरान रह जाता है। कालीशिला में श्रद्धालुओं के लिए रहने की कोई व्यवस्था नहीं है। यहां रह रहीं माई सरस्वती गिरी और थानापति मणि महेश गिरी ही श्रद्धालुओं के लिए अपनी टूटी-फूटी कुटिया में प्रबंध करते हैं।

सिर्फ कालीशिला के लिए ही बने हैं नियम कानून : रावत

सामाजिक कार्यकर्ता विजय सिंह रावत ने कहा कि कालीशिला में आकर पूर्व वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत ने बिजली व्यवस्था की घोषणा की। लेकिन, उनकी यह घोषणा आज तक पूरी नहीं हुई। सेंचुरी एरिया की बात कहकर वन विभाग कालीशिला में निर्माण कार्य नहीं करने दे रहा है, जबकि कालीशिला के पर्यावरण को हेलीकॉप्टर के कारण बहुत बड़ा नुकसान पहुंच रहा है। केदारनाथ धाम के लिए उड़ाने भरने वाली हेली कंपनियां कालीशिला क्षेत्र के पर्यावरण के साथ ही वन्य जीवों को नुकसान पहुंचा रही हैं। उन्होंने कहा कि कालीशिला में एक शौचालय निर्माण करने पर सीधा साधु-संतों को जेल भेज दिया जाता है। कहा कि कालीशिला क्षेत्र के लिए ही नियम कानून बने हैं। हेली कंपनियों के हाथों प्रदेश व केंद्र सरकार बिकी हुई है, जिससे वे अपनी मनमानी कर कालीमठ क्षेत्र के वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं।

धामी सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत : दिव्यांश भट्ट

राजस्थान से कालीशिला पहुंचे मां काली के भक्त दिव्यांश भट्ट ने कहा कि धामी सरकार को कालीशिला को विकसित करने की जरूरत है। यहां पर रोजगार की बहुत ज्यादा संभावनाएं हैं। यहां शौचालय, होम स्टे, पेयजल व बिजली की समुचित व्यवस्था होने से सरकार को राजस्व मिलेगा, जिससे यहां का तीर्थाटन व पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। सिद्धपीठ कालीशिला की पहचान को देश-दुनिया तक पहुंचाने के लिए यहां विकास कार्य करने चाहिए, जिससे यहां का तीर्थाटन बढ़े और यहां के लोगों को रोजगार मिल सके। उन्होंने कहा कि अभी इस क्षेत्र में काफी समस्याएं हैं। कालीशिला की महत्ता को देखते हुए सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

सिद्धपीठ स्थल की दुर्दशा, सनातन धर्म का अपमान : महंत बुद्धगिरि

कालीशिला में देश के विभिन्न राज्यों से पहुंचे साधु-संत भी यहां की स्थिति को देखकर हैरान रह जाते हैं। मध्यप्रदेश के उज्जैन से पहुंचे महंत बुद्धगिरी ने कहा कि देवभूमि के मठ-मंदिरों की मान्यताएं विश्व विख्यात हैं। इसलिए, इन सिद्ध स्थलों के विकास को लेकर कार्य करने की जरूरत है। मध्यप्रदेश की सरकार साधु-संतों को पेंशन और राशन से लेकर कुटिया बनाने तक में मदद कर रही है। कालीशिला दिव्य स्थल होने के बावजूद भी अपनी पहचान खोता जा रहा है। यहां रह रहे साधु-संतों के पास न रहने की कोई सुविधा है और न ही खाना बनाने के लिए भंडार है। क्षतिग्रस्त भवनों की छतों पर तिरपाल डालकर साधु-संत अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सिद्धपीठ स्थल की इस तरह दुर्दशा होना सनातन धर्म का अपमान है।


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