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नीलकंठ धाम से कुछ दूरी पर स्थित गरुड़ चट्टी, जानिए पूरी कहानी

Garud Chatti Temple | Garud Chatti |

ऋषिकेश से महज 10 किलोमीटर दूर और नीलकंठ धाम से 18 किलोमीटर पहले लक्ष्मणझूला क्षेत्र में प्राचीन मंदिर है। इस स्थान को गरुड़ चट्टी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान गरुड़ के इस मंदिर में आने से कुंडली में मौजूद कालसर्प दोष खत्म हो जाता है। मंदिर के चारों ओर प्राकृतिक स्रोत के कुंड हैं, जिसमें तैरती रंग-बिरंगी मछलियां मंदिर की खूबसूरती को और बढ़ा देती हैं। पूरे प्रदेश में गरुड़ देव का यह एक मात्र ही मंदिर है, जहां उत्तराखंड के साथ-साथ कई राज्यों से भी श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।

पुराणों के अनुसार, ऋषि कश्यप की दो पत्नियां थीं, जिनका नाम विनीता और कदरू था। विनीता और कदरू आपस में बहनें थीं। विनीता के पुत्र गरुड़ और कदरू के पुत्र सर्प थे। एक दिन दोनों बहनों ने नदी के पार एक घोड़े को देखकर आपस में शर्त लगाई। विनीता के अनुसार, उस घोड़े की पूछ सफेद और कदरू के अनुसार काली थी। कदरू ने अपनी बहन विनीता से कहा कि अगर मैं जीत गई तो तुम्हें मेरी दासी बनना पड़ेगा। सर्पों ने यह बात सुनी और घोड़े की पूछ से लिपट गए, जिससे उसकी पूछ काली दिखने लगी। गरुड़ की माता को दासता स्वीकार करनी पड़ी। यह देख गरुड़ ने अपनी माता को दासता से मुक्त करवाने के लिए कदरू के समक्ष प्रस्ताव रखा।

कदरू ने शर्त रखी कि अगर गरुड़ स्वर्गलोक से अमृत कलश लाकर उसे देगा तो उनकी माता को दासता से मुक्त कर दिया जाएगा। गरुड़ भगवान इंद्र के पास पहुंचे और उनसे विनती कर अमृत कलश धरतीलोक पर लाकर कदरू को दे दिया। यह देख भगवान विष्णु के प्रिय भक्त नारद ने एक माया रची और सर्पों के द्वारा एक यज्ञ करने की बात कही। नारद मुनि ने सर्पों से कहा कि यह यज्ञ करने से पहले नदी में स्नान करना जरूरी है। यह सुनकर सर्प अमृत कलश वहीं रखकर नदी में नहाने चले गए। तभी गरुड़ ने वहां से अमृत कलश उठाकर देवराज इंद्र को सौंप दिया और उनकी माता दासता से भी मुक्त हो गईं। तभी से गरुड़ और सर्प में बैर है।

कैसे पड़ा इस जगह का नाम गरुड़ चट्टी
मान्यता है कि गरुड़ मंदिर के पास एक पहाड़ की चट्टी है, जिस पर गरुड़ बैठकर तपस्या करते थे। इसके साथ ही गरुड़ भगवान विष्णु का वाहन भी हैं, इसलिए यहां भगवान विष्णु विश्राम भी करते थे। तभी से यह स्थान गरुड़ चट्टी के नाम से जाना जाता है।

मंदिर में होता है कालसर्प दोष का निवारण

मंदिर के पुजारी ने बताया कि मणिकूट पर्वत पर बसा यह मंदिर कालसर्प दोष निवारण केे लिए प्रसिद्ध है। जिस व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष होता है, भगवान विष्णु से आशीर्वाद के फल स्वरूप गरुड़ भगवान के मंदिर में नाग-नागिन का जोड़ा चढ़ाने और उनकी पूजा मात्र से कालसर्प दोष के प्रभाव से मुक्ति मिलती है।


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