कांग्रेस नेता हरक सिंह रावत और उनकी बहू अनुकृति को ED ने तलब किया है। हरक सिंह रावत को दो अप्रैल को और अनुकृति गुसाई को तीन अप्रैल को ईडी ने बुलाया है। दोनों पर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के तहत पाखरो टाइगर सफारी निर्माण घपले में अवैध लेन-देन का आरोप है। ईडी ने 7 फरवरी को हरक सहित उनके करीबी और कुछ आईएफएस अधिकारियों के ठिकानों पर छापेमारी की थी। ED ने हरक सिंह रावत को 29 फरवरी को भी पूछताछ के लिए बुलाया था।
भाजपा सरकार में राज्य के वन मंत्री के रूप में हरक सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान उन पर और उनके कुछ विभागीय अधिकारियों पर टाइगर सफारी परियोजना के तहत कॉर्बेट पार्क के पाखरो रेंज में अवैध पेड़ काटने और निर्माण में शामिल होने से संबंधित गंभीर आरोप लगे थे। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि पखरू बाघ सफारी के लिए 163 की अनुमति के खिलाफ कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) में 6,000 से अधिक पेड़ अवैध रूप से काटे गए थे। हालाँकि, राज्य वन विभाग ने एफएसआई के दावों का खंडन किया और कहा कि रिपोर्ट को अंतिम रूप से स्वीकार करने से पहले कुछ तकनीकी मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में हरक सिंह रावत और किशन चंद की खिंचाई करते हुए कहा, ‘सार्वजनिक विश्वास सिद्धांत’ को कचरे के डिब्बे में फेंक दिया गया था। क्योंकि, उन्होंने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) में अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई की अनुमति दी थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि राजनेता-नौकरशाह गठजोड़ ने कुछ राजनीतिक और व्यावसायिक लाभ के लिए कॉर्बेट नेशनल पार्क के पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि कैसे राजनीतिक और नौकरशाही गठजोड़ ने उत्तराखंड में आरक्षित वनों के पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया। न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने इसे एक उत्कृष्ट मामला बताया। जो दिखाता है कि राजनेताओं और नौकरशाहों ने कैसे सार्वजनिक विश्वास सिद्धांत को कूड़ेदान में फेंक दिया है।
कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में यह बिना किसी संदेह के स्पष्ट है कि तत्कालीन वन मंत्री और डीएफओ श्री किशन चंद ने इन्हें अपने लिए कानून माना था। उन्होंने कानून की घोर अवहेलना करते हुए और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए अवैध काम में लिप्त हो गए। पर्यटन को बढ़ावा देने के बहाने इमारतें बनाने के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई की जा रही है।
पीठ ने विभिन्न बातों पर भी गौर किया। जैसे कि डीएफओ किशन चंद को उनकी पिछली पोस्टिंग में गंभीर अनियमितताओं में शामिल पाया गया था और भले ही अधिकारियों ने उक्त अधिकारी को किसी भी संवेदनशील पद पर तैनात नहीं करने की सिफारिश की थी। लेकिन, तत्कालीन वन मंत्री ने संवेदनशील पद पर स्थानांतरण एवं पदस्थापन से संबंधित प्रस्ताव में उनका नाम डाला था।