Chaitra Navratri 2024 : नवरात्रि के पर्व पर सिद्धपीठ हरियाली देवी मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। वहीं, देश के प्रथम गांव माणा से 20 महिलाओं के दल ने अपने पारंपरिक परिधान में मां भगवती हरियाली देवी के दरबार में पहुंचकर विश्व कल्याण की कामना की। माणा गांव की महिलाओं ने मंदिर में पारंपरिक परिधान में नृत्य भी किया, जिसे देखने के लिए लोगों का तांता लग गया।
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित हरियाली देवी मंदिर भारत के 58 सिद्धपीठों में से एक है। हरियाली देवी मंदिर रुद्रप्रयाग से 37 किमी दूर जसोली गांव में स्थित है। हरियाली देवी मंदिर में देवी की शेर पर सवार एक श्वेत मूर्ति है। मंदिर में हरियाली देवी के साथ-साथ क्षेत्रपाल और हीत देवी की मूर्ति भी स्थापित की गई है। हरियाली देवी को योगमाया और धन की देवी के रूप में पूजा जाता है। मंदिर में हरियाली (हरे रंग के पौधों) का विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार, योगमाया भगवान श्रीकृष्ण की बहन हैं और भगवती का संबंध बद्रीनाथ से भी बताया गया है।
नवरात्रि पर्व पर हरियाली देवी मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। भारत के प्रथम गांव माणा की 20 महिलाओं के दल ने यहां पहुंचकर मां की पूजा-अर्चना की। महिलाओं ने अपने पारंपरिक पापड़ के आटे से मां भगवती को भोग चढ़ाया। इस अवसर पर मंदिर परिसर में उन्होंने अपने पारंपरिक नृत्य तथा पारंपरिक भगवती के गीतों के माध्यम से मां हरियाली की स्तुति की। साथ ही पारंपरिक चचरी नृत्य से संस्कृति की छठा बिखेरी।
हरियाली देवी मंदिर के मुख्य पुजारी विनोद प्रसाद मैठाणी ने बताया कि नवरात्रि के प्रथम दिवस से ही हरियाली देवी मंदिर में देवी सप्तशती पाठ निरंतर चल रहा है और दूर-दूर से श्रद्धालु मां भगवती हरियाली का आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर आ रहे हैं। हरियाली देवी मंदिर में लगातार भक्तों की संख्या बढ़ती जा रही है। वेदपाठी विजय प्रसाद जसोला एवं चन्द्र प्रकाश चमोली ने कहा कि भक्तों के कल्याण के लिए हरियाली देवी मंदिर में सप्तशती पाठ का आयोजन किया गया है। अब तक हजारों भक्त मंदिर में आकर पुण्य अर्जित कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि मंदिर में बोई गई हरियाली को सभी भक्तों को आज नवमी के दिन प्रसाद स्वरूप दिया जाएगा।
आदिगुरु शंकराचार्य के समय हुआ था मंदिर का निर्माण
रानीगढ़ पट्टी क्षेत्र स्थित मां हरियाली देवी का मंदिर विश्व विख्यात है। यहां देश के विभिन्न राज्यों के साथ ही विदेशों से भी भक्त पहुंचते हैं। हरियाली देवी मंदिर सिद्धपीठ मंदिरों में शामिल है। मंदिर का निर्माण आदिगुरु शंकराचार्य के समय का माना जाता है। यह अगस्त्यमुनि ब्लॉक के रानीगढ़, धनपुर व बच्छणस्यूं समेत ढाई सौ से अधिक गांवों के आस्था का प्रतीक है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवकी माता और वासुदेव की सातवीं संतान के रूप में महामाया देवी पैदा हुईं तो कंस ने महामाया देवी को जमीन पर पटककर मारना चाहा। कंस ने जैसे ही महामाया देवी को जमीन पर पटका, उनके शरीर के टुकड़े पूरी पृथ्वी पर बिखर गए। मान्यता है कि महामाया देवी का हाथ जसोली नामक गांव में गिर गया। तब से ही यहां हरियाली देवी के रूप में मां का पूजन शुरू हुआ।
रात में होने वाली विश्व की यह पहली यात्रा
हरियाली मां का जसोली में ससुराल और जंगल में स्थित कांठा मंदिर में मायका माना जाता है। धनतेरस पर मां हरियाली की डोली को जसोली से सात किलोमीटर दूर मायके हरियाली कांठा ले जाया जाता है। इस यात्रा में भाग लेने वाले सभी श्रद्धालु एक हफ्ते पहले से ही तामसिक भोजन मीट-मांस, शराब, अंडा, प्याज और लहसुन का सेवन करना बंद कर देते हैं। यात्रा में सिर्फ पुरुष श्रद्धालु ही भाग लेते हैं। विश्व में यह पहली यात्रा होगी, जो रात में की जाती है और मां के दर्शन कर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। चैत्र व शारदीय नवरात्रों में यहां विशेष पूजा होती है। काली रात्रि को पूरी रात जागरण होता है।