18वीं लोकसभा चुनाव के लिए लगभग सभी पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है। लोकसभा का पहले चरण का चुनाव भी हो चुका है लेकिन अभी भी कुछ ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां पार्टियों ने अभी भी अपने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है। ऐसी ही एक सीट है उत्तर प्रदेश में कैसरगंज। कैसरगंज में भाजपा ने अभी भी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। फिलहाल कैसरगंज से बृजभूषण शरण सिंह भाजपा के सांसद हैं। सियासी उठापटक के बीच अभी भी कैसरगंज सीट से उम्मीदवार को लेकर संदेह अब भी बरकरार है। कैसरगंज सीट पर भाजपा बृजभूषण शरण सिंह को अपना उम्मीदवार फिर से बनाएगी या मैदान में कोई नया प्रत्याशी आएगा, इसको लेकर सियासी बाजार गर्म चल रहा है। नुक्कड़ों, चौक-चौराहों पर इसी बात को लेकर चर्चाएं लगातार जारी है।
कैसरगंज सीट पर दावेदारी तो कई उम्मीदवार कर रहे हैं, लेकिन किसी के पास आधिकारिक सिंबल नहीं है, इसी वजह से वह वोट मांगने में भी हिचकिचा रहे हैं। अगर बात की जाए भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह कि तो उनका दबदबा इस सीट पर लगातार देखने को मिला है। वह इस सीट पर तीन बार से सांसद रहे हैं, लेकिन कथित यौन उत्पीड़न के आरोपों की वजह से इस बार उनका टिकट भी फंसा हुआ नजर आ रहा है। इस मामले ने सरकार की भी खूब किरकिरी करवाई है। लेकिन इस सीट पर बृजभूषण का इतना दबदबा है कि पार्टी उन्हें न तो दरकिनार कर पा रही है और न ही उनके नाम की अभी तक घोषणा कर पाई है।
कैसरगंज लोकसभा सीट की कहानी
बहराइज और गोंडा जिले के कुछ विधानसभा सीटों को काटकर कैसरगंज लोकसभा सीट का गठन किया गया है। चुनाव आयोग के मुताबिक कैसरगंज में विधानसभा की 5 सीटें हैं, जिसमें से 2 बहराइच और 3 गोंडा जिले की सीट शामिल हैं। 2008 के परिसीमन के बाद इस सीट का राजनीतिक भूगोल बदल गया. यहां की कुछ सीटें गोंडा में चली गई। कैसरगंज सीट शुरू से ही जनसंघ/भाजपा का गढ़ रहा है। 1952 में हिंदू महासभा ने यहां से जीत दर्ज की थी। 1967 और 1971 में जनसंघ को यहां से जीत चुकी है। बीजेपी को भी कैसरगंज सीट से 5 बार जीत मिल चुकी है। बीजेपी के अलावा समाजवादी पार्टी ने यहां से 5 बार जीत हासिल की थी। कांग्रेस 3 बार और जनता पार्टी और स्वतंत्र पार्टी ने एक-एक बार यह सीट जीती है।
20 मई को है मतदान
कैसरगंज सीट पर 26 अप्रैल से नामांकन दाखिल होगा, जो कि 3 मई को खत्म हो जाएगा। कैसरगंज सीट पर 20 मई को मतदान होगा।
क्या कहता है कैसरगंज का जातीय समीकरण
हर चुनाव में जातीय समीकरण बहुत मायने रखता है। चाणक्या सर्वे एजेंसी के मुताबिक कैसरगंज लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा 25 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है। 15 प्रतिशत यहां पर दलित है। इसके अलावा ठाकुर और ब्राह्मण मतदाताओं का भी इस सीट पर दबदबा है । कुर्मी मतदाता भी यहां किसी भी प्रत्याशी का खेल बिगाड़ने की पूरी क्षमता रखते हैं। हालांकि, जाति से ज्यादा यहां धर्म का कार्ड चलता है। यही वजह है कि 1952 में पहली बार अयोध्या के विवादित डीएम रहे केके नायर की पत्नी शकुंतला नायर ने यहां से चुनाव जीता था । शकुंतला कैसरगंज सीट से 3 बार सांसद रही हैं, जबकि वो मूल रूप से केरल की रहने वाली थीं।
बृजभूषण शरण ने मीडिया को बताया जिम्मेदार
हाल ही में मीडिया ने जब सांसद बृजभूषण शरण सिंह से टिकट घोषणा में देरी की बात कही तो नाम आने में देरी को लेकर बृजभूषण शरण सिंह ने मीडिया को ही जिम्मेदार ठहरा दिया। सिंह ने टिकट को लेकर कहा था कि “होइए वही, जो राम रचि राखा”
सपा व बीएसपी ने भी अभी नहीं की घोषणा
बीजेपी ने कैसरगंज सीट से अभी अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। सपा व बसपा ने भी अभी अपने प्रत्याशियों के नाम का पत्ता नहीं खोला है। सभी पार्टियां बीजेपी के फैसले का इंतजार कर रही हैं। कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी अगर बृजभूषण के परिवार को टिकट नहीं देती है, तो सपा किसी राजपूत बिरादरी के व्यक्ति को टिकट दे सकती है। वहीं अगर उनके परिवार को टिकट मिल जाता है, तो पार्टी ब्राह्मण उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है।