Unique Case in Haldwani : किसी व्यक्ति की अर्थी मरने के बाद विधि विधान के साथ सजाई जाती है। इसके बाद उसका अंतिम संस्कार किया जाता है, लेकिन हल्द्वानी में एक अनोखा मामला सामने आया है। एमबीपीजी महाविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर संतोष मिश्रा ने जिंदा ही अपनी अर्थी सजा ली।
संतोष मिश्रा ने क्यों सजाई अर्थी?
संतोष मिश्रा सामाजिक कार्यों के लिए जाने जाते हैं। देहदान, अंगदान, नेत्रदान, साहित्य और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भी अपनी भूमिका निभाते हुए उन्होंने समय-समय पर लोगों को जागरूक करने का काम किया है। इस बार पूर्व प्रोफेसर ने जिंदा ही अपनी अर्थी सजाकर पर्यावरण बचाने का संदेश दिया है।
संतोष मिश्रा बाकायदा बांस की लकड़ी और बाजार से कफन के कपड़े लेकर अपने घर आये और घर के बाहर ही अपनी अर्थी सजा ली। इस दौरान संतोष मिश्रा ने कहा कि अर्थी पर लेटकर लोगों को जलवायु और पर्यावरण रोकने की गुहार लगाई है।
विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करने की अपील
हल्द्वानी नगर निगम द्वारा आम जनमानस की वर्षों की मांग पर रानीबाग में करोड़ों की लागत से विद्युत शवदाह गृह बनाया गया है, लेकिन लोग अपने परिजनों का अंतिम संस्कार विद्युत शवदाह गृह में नहीं, बल्कि लकड़ी के माध्यम से नदी के किनारे कर रहे हैं, जिसके चलते जलवायु और पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है।
नगर निगम के द्वारा विद्युत शव दाह में अंतिम संस्कार निःशुल्क करने के बावजूद लोग इसे अपनाने में हिचक रहे हैं, जबकि शहरों की बढ़ती आबादी और घटते जंगल इस बात के लिए आगाह कर रहे हैं कि हमें परम्परागत साधनों के साथ बिजली और गैस आधारित शवदाह गृहों को अपनाने की भी आवश्यकता है। राजधानी दिल्ली सहित देश के सभी बड़े शहरों में वर्षों से इन्हें अन्तिम संस्कार के लिए लोग प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन रानी बाग स्थित विद्युत शव दाह में केवल लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है। वहीं, आम आदमी अंतिम संस्कार लकड़ी से कर रहे हैं।
संतोष मिश्रा ने इस अनोखे प्रयोग के माध्यम से लोगों से अपील की है कि शवों का अंतिम संस्कार लकड़ी के बजाय विद्युत संचालित शव दाह गृह में करें, जिससे कि पर्यावरण को बचाया जा सके।