Sericulture In Haldwani: पहाड़ के किसानों के लिए रेशम की खेती फायदे का सौदा साबित हो रही है। यही वजह है कि पहाड़ के किसान अपने पारंपरिक फसलों के साथ-साथ अब रेशम कीट पालन के माध्यम से अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहे हैं। इसके जरिये किसान कम लागत में अच्छी आमदनी कर रहे हैं।
रेशम उत्पादन की ओर बढ़ रहा किसानों का रुझान
कुमाऊं मंडल के किसानों का रुझान रेशम उत्पादन की ओर बढ़ रहा है। कुमाऊं मंडल में रेशम उत्पादन भी साल दर साल बढ़ता जा रहा है। बात कुमाऊं मंडल की करें तो रेशम कीट पालन से 2800 से अधिक किसान जुड़े हुए हैं, जो शहतूती रेशम कीट पालन के माध्यम से इस वित्तीय वर्ष 2023-24 में 89652.40 किलोग्राम रेशम के कोया का उत्पादन किया है, जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में 87191.80 किलोग्राम शहतूती रेशम कोया उत्पादन हुआ था।
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किसानों को प्रोत्साहित कर रहा विभाग
उपनिदेशक रेशम विभाग कुमाऊं मंडल हेमचंद्र ने बताया कि रेशम कीट पालन करने के लिए विभाग द्वारा किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे किसान अपनी पारंपरिक खेती के साथ-साथ रेशम कीट पालन के माध्यम से अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकें। उन्होंने बताया कि किसान अपने खेत की अनुपयोगी मेड़ों पर 300 शहतूत के पौधे लगाकर 25,000 रुपये तक वार्षिक आमदनी कर रहे हैं।
शहतूती रेशम की भारी डिमांड
रेशम कोया को बिक्री के लिए उत्तराखंड कोऑपरेटिव रेशम फेडरेशन कोया बाजार उपलब्ध कराता है, जिसमें बाहर के व्यापारी कोया खरीदने आते हैं। उन्होंने कहा कि कुमाऊं का शहतूती रेशम पूरे देश में प्रसिद्ध है। कुमाऊं मंडल में मुख्य रूप से शहतूती रेशम का उत्पादन होता है। यहां के उच्च गुणवत्तायुक्त शहतूती रेशम की भारी डिमांड है। रेशम उत्पादन के लिए मार्च और अप्रैल के साथ ही सितंबर और अक्तूबर का महीना सबसे मुफीद है।
किसानों को रेशम कीट उपलब्ध कराता है विभाग
रेशम विभाग किसानों को रेशम कीट उपलब्ध कराता है। इसके बाद 15 दिन तक कीड़ों का पालन कर कोया तैयार किया जाता है। कोया उत्पादन में रेशम कीट को समय से चारा पत्ती देना, सफाई, दवाई का छिड़काव आदि का ख्याल रखा जाता है। इसके साथ ही विभाग के तकनीकी कार्मिक भी किसानों को सलाह देते हैं। रेशम उत्पादन के लिए किसानों को किसी तरह का इन्वेस्टमेंट करने की जरूरत नहीं है। किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ रेशम उत्पादन भी कर सकता है।
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