Potato Farming Ruined In Haldwani: पहाड़ की आलू की डिमांड उत्तराखंड के साथ-साथ मैदानी क्षेत्र के मंडियों में खूब की जाती है। कुमाऊं के नैनीताल, चंपावत और बागेश्वर जिलों में आलू का उत्पादन अधिक मात्रा में होता है। पहाड़ों पर आलू की खेती किसानों की आर्थिकी की रीढ़ कही जाती है। खासकर नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर, धारी, खनस्यू, पदमपुरी भीमताल आदि क्षेत्रों में आलू की खूब पैदावार होती है।
मैदानी क्षेत्र के आलू ने मंडी में जमाया कब्जा
इस वर्ष आलू की खेती पर पहले सूखे की मार पड़ी और अब बचे हुए आलू को बारिश ने पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। जिसके चलते किसानों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। यही नहीं कुमाऊं के सबसे बड़े हल्द्वानी मंडी में पहाड़ के आलू नहीं आने के चलते पहाड़ के आलू के दामों में इजाफा हो गया है। पहाड़ के आलू नहीं आने के चलते मैदानी क्षेत्र के आलू ने मंडियों में अपना कब्जा जमा लिया है।
सूखे के बाद बारिश ने बढ़ाई किसानों की चिंता
हल्द्वानी मंडी में जून से लेकर सितंबर तक पहाड़ की आलू की आवक खूब होती है, लेकिन फसल चौपट होने से मात्र 20% ही आलू की आवक रह गई है। पहाड़ों पर आलू की खेती किसानों की आर्थिकी की रीढ़ मानी जाती है। खासकर नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर, धारी, खनस्यू, पदमपुरी, भीमताल आदि क्षेत्र में आलू की खूब पैदावार होती है। बाजार में पहाड़ का आलू पहुंचते ही देसी आलू के भाव गिर जाते है। लोगों की जुबां पर पहाड़ी आलू की डिमांड रहती है, मगर इस बार सूखे और बारिश ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है।
पूरे भारत में रहती है पहाड़ी आलू की डिमांड
कुमाऊं के सबसे बड़े हल्द्वानी मंडी के आलू फल आढ़ती एसोसिएशन के अध्यक्ष कैलाश जोशी ने बताया कि पहाड़ी आलू की डिमांड पूरे भारत में होती है। पहाड़ का आलू दिल्ली, कोलकाता, आगरा, गुजरात समेत अन्य राज्यों में पहुंचता है। लेकिन मंडी में पहाड़ की आलू की डिमांड तो है लेकिन आवक नहीं होने के चलते आलू दूसरे मंडी तक नहीं पहुंच पा रहा है।
पहाड़ की आलू बाजारों में नहीं होने के चलते पहाड़ी आलू की कीमत 50 से 60 रूपये किलो तक पहुंच गई है।
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