Sawan 2024: देवभूमि उत्तरकाशी मां गंगा-यमुना के उद्गम स्थल सहित हजारों ऋषियों की तपोभूमि कही जाती है। यहां कण-कण में भगवान विराजमान हैं। 22 जुलाई से सावन शुरू हो रहा है। आज हम आपको दर्शन कराते हैं उत्तरकाशी के एक ऐसे मंदिर की जहां, भगवान शिव स्यंमभू रूप में विराजमान हैं।
पौराणिक महत्व
उत्तरकाशी को यूंही भविष्य की काशी नहीं कहा जाता है, यहां अस्सी वरूणा का संगम मां गंगा से होता है। भगवान गणेश की जन्मस्थली डोढीताल से निकलने वाली अस्सी गंगा एवं वरूणावत पर्वत से निकलने वाली वारू नदी के बीच में बसे इस स्थान को भविष्य की काशी यानी उत्तरकाशी कहा जाता है। यहां यह दोनों नदियां मां गंगा के साथ मिलकर संगम बनाती हैं।
स्कंद पुराण में है उल्लेख
हम भगवान शिव के जिस निवास स्थान की बात कर रहे हैं, उसका उल्लेख स्कंन्द पुराण के केदार खंड नामक अध्याय में भी किया गया है। जिसमें लिखा गया है कि कलयुग के आरंम्भ में भगवान शिव काशी को छोड़कर अस्सी एवं वरूणा के संगम स्थल उत्तरकाशी में स्यंमभू रूप में विराजमान हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव यहीं से ही सृष्टि का संचालन कर रहे हैं और यह स्थान आज आस्था का केंन्द्र बना हुआ है।
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सावन में यहां जल चढ़ाने का महत्व
वैसे तो यहां सालभर स्थानीय निवासियों एवं चारधाम यात्रा पर आने वाले लोगों का तांता लगा रहता है। सावन के महीने में यहां जल चढ़ाने से जन्म जन्मांतर के जाल से मुक्ति मिल जाती है। यहां पर मात्र गंगाजल एवं भगवान शिव के मंत्र ओम नम: शिवाय के उच्चारण से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। ऐसी भी मान्यता है कि यहां पर अपना शरीर त्याग करने वाले मानव को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है।