Rudraprayag News: देवभूमि उत्तराखण्ड की संस्कृति और विरासत अपने आप में अद्भुत और अनूठी है। यहां के मठ-मंदिरों का पौराणिक–धार्मिक महत्व इस विरासत को और समृद्ध बनाता है। देवभूमि के कण-कण में देवताओं का वास है। यहां सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की अलौकिक शक्तियां अलग-अलग रूप धारण कर दिव्य चमत्कारों से लोगों को श्रद्धा से सिर झुकाने पर विवश कर देती हैं। दहकते अंगारों पर जाख देवता के नृत्य की परंपरा तो सदियों पुरानी है। संवत् 1111 से रुद्रप्रयाग के गुप्तकाशी के निकट जाखधार में भगवान जाख देवता का मंदिर स्थित है। यहां पर हर साल विशाल अग्निकुंड के धधकते अंगारों पर नृत्य करके पशवा लोगों के सुखमय भविष्य की कामना के साथ-साथ क्षेत्र में सूखाग्रस्त इलाकों में बरसात भी करवाते हैं।
हर साल आयोजित होता है जाख मेला
हर साल बैसाखी पर जाखधार में भव्य जाख मेला आयोजित होता है। प्रातः काल से देर शाम तक हजारों की तादाद में भक्त इस विस्मयकारी दृश्य देखने को अग्निकुंड से कुछ दूरी पर खड़े रहते हैं। गत कई वर्षों से नारायणकोटी गांव के पुजारी सच्चिदानंद पर भगवान यक्ष अवतरित होते हैं, जो गत वर्षो की भांति इस वर्ष भी अग्निकुंड में एक बार नृत्य करके मंदिर में तनिक विश्राम लेते हैं। इसी दौरान अप्रत्याशित रूप से नाला गांव के एक व्यक्ति पर भगवान यक्ष अवतरित होते हैं और वे विशाल अग्निकुंड में काफी वक्त तक नृत्य करते हैं।
पहली बार अग्निकुंड में एक साथ दो पशवाओं ने किया नृत्य
बता दें कि जाख मेले को लेकर यह पहला मौका है, जब एक ही अग्निकुंड में एक ही बार दो यक्ष अवतरित हुए हैं। दोनों पशवाओं ने सभी भक्तों को आशीर्वाद दिया। हालांकि, स्थानीय लोगों ने परंपरा से हटकर किए गए इस कर्म का थोड़ा बहुत विरोध भी किया। काफी देर तक स्थानीय पुजारी, आचार्य और कई गांवों के ग्रामीणों के बीच इस मुद्दे को लेकर खासा विचार-विमर्श भी हुआ।
नंगे पैर लोग इकट्ठा करते हैं लकड़ियां
गुप्तकाशी क्षेत्र स्थित देवशाल में चौदह गांवों के मध्य स्थापित जाख देवता मंदिर में प्रति वर्ष बैशाख मास, कृष्ण पक्ष, नवमी तिथि को भव्य जाख मेले का आयोजन किया जाता है। मेला आरम्भ होने के 2 दिन पूर्व से ही लोग बड़ी संख्या में सिर पर टोपी और कमर में कपड़ा बांध कर नंगे पैर लकड़ियां, पूजा सामग्री और खाद्य सामग्री इकट्ठा करते हैं। सभी ग्रामीण मिलकर एक भव्य अग्निकुंड का निर्माण करते हैं। इस अग्निकुंड में करीब 100 कुंतल लकड़ियां समाहित की जाती हैं। अग्निकुण्ड में लकड़ियों का ढेर लगभग 10 फुट से भी ऊंचा होता है।
बैशाखी के दिन अग्निकुंड में प्रज्वलित की जाती है अग्नि
बैसाखी के दिन समस्त देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के बाद रात्रि में अग्निकुंड में अग्नि प्रज्वलित कर दी जाती हैं। रात भर नारायणकोटि और कोठेड़ा ग्राम के ग्रामीण अग्निकुंड की देखभाल करते हैं। अगले दिन दोपहर में जाख देवता का पशवा (जिस इंसान के ऊपर देवता अवतरित होते हैं, उन्हें स्थानीय भाषा में पशवा कहा जाता है और कुमाउनी भाषा में उन्हें डंगरिया भी कहा जाता है) मन्दाकिनी नदी में स्नान करने जाता है। यहां से पश्वा ग्राम नारायण कोटि से कोठेडा, देवशाल होते हुए जाख धार पहुंचता है। वहां पहुंच कर देवता का पश्वा उस भव्य अग्निकुंड में नृत्य करता है।
पशवा के नृत्य को देख दंग रह गए लोग
धधकते अग्निकुंड में जाख देवता पशवा पर अवतरित होकर नंगे पांव कूद कर लोगों की बलाएं लेता है। वहां उपस्थित लोग इस दृश्य को देखकर एकदम अचंभित हो जाते हैं कि देवता का पशवा धधकते अंगारों पर नंगे पांव कैसे नृत्य करते हैं। वह अग्निकुंड इतना विकराल होता है कि उसकी भयंकर अग्नि की तपिश के कारण लोग कुछ समय तक भी उसके आस–पास ठहर नहीं पाते हैं और देवता का पश्वा उसमें नृत्य करता है- वह भी दो बार।
अग्निकुंड की भभूत को प्रसाद के रूप में घर ले जाते हैं लोग
इस अद्भुत दृश्य को देखकर भक्त श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते हैं। जाख देवता अग्नि स्नान के बाद शीतल जल के घड़े से स्नान करते हैं। उसके बाद देवता अपने भक्तों को आशीर्वाद स्वरूप पुष्प प्रदान करता है। भक्त लोग अग्निकुंड की भभूत को प्रसाद के रूप में अपने घर ले जाते हैं। इसके साथ ही इस भव्य–दिव्य मेले का समापन हो जाता है।