देहरादून में स्थित महाभारत कालीन एक अनोखा शिव मंदिर है। इसका रहस्य जानकर आप हैरान रह जाएंगे। जी हां यहां देवों के देव महादेव ने ना सिर्फ गुरु द्रोणाचार्य के तप से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए थे, बल्कि उनके पुत्र अश्वत्थामा के लिए दूध की धारा भी बहाई थी। इस मंदिर में आज भी जलधारा भोलेनाथ का अनादि काल से अनवरत जलाभिषेक कर रही है। ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
देहरादून शहर से करीब 6 किलोमीटर दूर गढ़ी कैंट छावनी क्षेत्र में तमसा नदी के तट पर श्री टपकेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। महाभारत काल से पहले गुरु द्रोणाचार्य ने जगत कल्याण के लिए तप किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए। साथ ही उन्हें धनुर विद्या का भी ज्ञान दिया। गुरु द्रोण के आग्रह पर ही भोलेनाथ शिवलिंग के रूप में यहां स्थापित हो गए। इतना ही नहीं, महादेव के आशीर्वाद से उनको इसी स्थान पर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। गुरु द्रोण ने उसका अश्वस्थामा रखा था।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अश्वस्थामा एक बार अपने माता-पिता से दूध पीने की जिद करने लगा। लेकिन, उनके पास दूध की कोई भी व्यवस्था नहीं थी। उन्होंने अश्वस्थामा से कहा कि महादेव से आप प्रार्थना करो। अश्वस्थामा ने मंदिर की गुफा में 6 माह तक एक पैर पर खड़े होकर घनघोर तप किया, जिससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ प्रकट हुए।
अश्वस्थामा ने भगवान से दूध पीने की इच्छा जताई। इस पर महादेव ने शिवलिंग के ऊपर स्थित चट्टान में गाय के थन बना दिए, जिससे दूध की धारा बहने लगी। इसकी वजह से भगवान शिव का नाम दूधेश्वर पड़ा। लेकिन, जब कलयुग की शुरुआत हुई तो दूध की धारा जल में परिवर्तित हो गई, जो आज भी लगातार शिवलिंग का जलाभिषेक कर रही है। इसकी वजह से इस स्थान का नाम टपकेश्वर महादेव धाम पड़ गया। टपकेश्वर महादेव के दर्शन के लिए श्रद्धालु देश के कोने-कोने से पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि सावन के पवित्र महीने में यहां मात्र जल चढ़ाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।