Explosion In The Tunnel: सुरंग और सड़क आदि के निर्माण में पहाड़ को काटने और भेदने के लिए विस्फोट किया जाता है। जब यह विस्फोट किया जाता है तो उससे 400 मीटर दूर तक के पहाड़ों में कंपन्न उठता है।
सही तकनीकी के अभाव में विस्फोट की 50 प्रतिशत ऊर्जा पत्थरों को तोड़ने के बजाय बाहर की तरफ जाकर बर्बाद हो जाती है। अब वैज्ञानिक पहाड़ों की सुरक्षा के लिए शॉक कंट्रोल आधारित नोनल डेटोनेशन सिस्टम का प्रयोग करने की पैरवी कर रहे हैं, ताकि इस कंपन को काफी हद तक कम किया जा सके।
पहाड़ी राज्यों के विकास के लिए संचालित विभिन्न परियोजनाओं में पहाड़ों को काटने के लिए बड़ी मात्रा में विस्फोटकों का प्रयोग किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर पहाड़ों पर जगह-जगह भूस्खलन, भू-धंसाव के साथ मकानों की दीवारों, छतों और फर्श आदि में दरारों की भी लगातार खबरें आ रही हैं।
उत्तराखंड के जोशीमठ में पिछले साल इस तरह की कई घटनाएं देखने को मिली थीं। इस दौरान कई घरों को खाली कराया गया था। बागेश्वर जिले में भी दो दर्जन से अधिक घरों में दरारें पड़ने की खबर मीडिया में आई थी। इस तरह की घटनाओं से पहाड़ पर रहने वाले लोग दहशत में आ गए हैं।
पहाड़ों में टनल निर्माण की तकनीकी को लेकर आईआईटी पटना के निदेशक प्रो. टीएन सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि टनल के निर्माण के दौरान किए जाने वाले विस्फोट से करीब 400 मीटर तक पहाड़ प्रभावित होते हैं। उन्होंने बताया कि विस्फोटक को सही जगह और स्थिति में रखे जाने से इस दूरी को कम किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि विस्फोट के लिए नोनल डेटोनेशन सिस्टम का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे कंपन की दूरी 100 मीटर तक सीमित रह जाती है। प्रो. टीएन सिंह ने बताया कि इस तकनीकी का इस्तेमाल करने से सिस्टम में छोटे-छोटे छेद होते हैं, जो 25 से 50 मिली सेकंड के अंतर पर विस्फोट से होने वाली ध्वनि को नियंत्रित करता है।
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