Spiritual Guru Master Ji: मिशन 800 करोड़ के माध्यम से हैप्पीनेस की गारंटी को लेकर फरवरी 2024 से देशभर की यात्रा कर रहे आध्यात्मिक गुरु मास्टर जी बुधवार को मसूरी पहुंचे। मास्टर जी जिनको पहले राकेश के नाम से जाना जाता था, उनके जीवन में परिवर्तन मसूरी में ही हुआ। उन्होंने 17 साल पहले मसूरी के झूलाघार चौक पर साक्षत परमपमेष्वर द्वारा ज्ञान की अनुभूति हुई। इसके बाद उनके जीवन में बड़ा परिवर्तन आया और दुनिया के लोगों को अपनी वाणी से आध्यात्मिक प्रवचन के माध्यम से लोगों की अंर्तदृष्टि बदलने के संकल्प के साथ कार्य करने में लग गए।
आध्यात्मिक गुरू मास्टर जी ने मसूरी में पत्रकारों से वार्ता करतें हुए बताया कि वास्तविक उद्देश्य को समझने के लिए वर्ष 2007 में मसूरी आए और यहां से ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि मसूरी भोग की नगरी नहीं योग की नगरी है, जहां पर साक्षात भगवान वास करते है। तब से वह दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर लोगों को अपनी वाणी से ज्ञान बाटने का काम कर रहे है।
मास्टर जी विशेषकर युवाओं में मानसिक तनाव, चिंता, अवसाद, नींद संबंधी विकार, आत्मघाती विचार, मादक द्रव्यों के सेवन आदि पर चर्चा कर लोगों को अनंत के दर्शन करा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन एक अभिनय है, जिसे जो रोल मिला वह कर रहा है, लेकिन अगर आध्यात्म की ओर जाएंगे तो सभी रोगों से मुक्ति मिलेगी व जीवन में खुशियां आएंगी।
उन्होंने कहा कि पिछले 17 सालों से आध्यात्मिक गुरु मास्टर जी निस्वार्थ भाव से अपने आध्यात्मिक प्रवचनों के माध्यम से लाखों लोगों के साथ अपने अनुभवजन्य ज्ञान को साझा कर रहे हैं। वो भी बिल्कुल निशुल्क। हजारों नियमित श्रोताओं पर उनकी वाणी के सकारात्मक प्रभाव को देखने के बाद मास्टर जी ने अगले 6 वर्षों में अपने मिशन 800 करोड़ के माध्यम से हैप्पीनेस की गारंटी टैगलाइन के साथ अपनी वाणी को पृथ्वी के अंतिम व्यक्ति यानी 800 करोड़ की पूरी दुनिया की आबादी तक पहुंचाने का संकल्प लिया है।
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उन्होंने बताया कि हैदराबाद में संस्कृति मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा आयोजित अपनी तरह का पहला वैश्विक कार्यक्रम था। इसमें 100 से अधिक देशों के 300 से अधिक आध्यात्मिक संगठनों ने भाग लिया था और इसमें दस लाख से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए थे। इस कार्यक्रम का उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति ने किया था। कार्यक्रम के दोनों दिनों में आध्यात्मिक गुरु मास्टर जी मुख्य वक्ता रहे। कार्यक्रम के समापन के दिन भारत के उपराष्ट्रपति, संस्कृति मंत्री और राष्ट्रमंडल महासचिव की उपस्थिति में भी उनको अपने अनुभवात्मक विचार रखने का अवसर मिला था।
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