Pratap Pokhriyal: दशरथ मांझी की कहानी तो आपने सुनी ही होगी कि कैसे उन्होंने छेनी हथौड़े से पहाड़ को काटकर गांव में सड़क पहुंचाई थी। उसी प्रकार की एक मिसाल पेश कर रहे हैं जनपद उत्तरकाशी के 70 वर्षीय प्रताप पोखरियाल। इनकी कहानी भी कुछ इसी तरह की है।
पहाड़ों का जीवन पशुपालन से जुड़ा हुआ है। यहां की महिलाएं दिनभर जंगलों में घास काटने के लिए जाती हैं। इसी दौरान कई महिलाओं की पहाड़ियों से गिरने से मौत भी हो जाती है। प्रताप पोखरियाल जब छोटे थे तो उनकी चाची की घास काटते समय पहाड़ी से गिरकर मौत हो गई थी। उस समय प्रताप पोखरियाल ने शपथ ली थी कि वह अपने गांव के नजदीक जंगल तैयार करेंगे। वह 30 सालों से अपना मैकेनिक का काम छोड़कर लगातार पेड़ लगा रहे हैं। आज इनके द्वारा कई जंगल स्थापित किए गए हैं।
प्रताप पोखरियाल ने वरुणावत पर्वत को दी मजबूती
साल 2003 में जनपद मुख्यालय में वरुणावत पर्वत में जब भूस्खलन से सैकड़ों होटल, आवासीय भवन और बस अड्डा दब गया था तो प्रताप पोखरियाल ने वरुणावत पर वन स्थापित कर उसे मजबूती दी। इनके लगाये वन में पूरे भारतवर्ष के स्कूलों से छात्र रिसर्च करने आते हैं।
सरकार की तरफ से नहीं मिला अनुदान
70 साल की उम्र होते हुए भी प्रताप पोखरियाल दिन-रात पेड़ लगाते हैं और उनकी देखभाल करते हैं। पर्यावरण को बचाने की इनकी इस पहल के बावजूद आज तक सरकार द्वारा इन्हें कोई अनुदान नहीं दिया गया। हालांकि, लोगों के दिल में आज ये पर्यावरण प्रेमी नाम से फेमस हैं। वे जहां भी जाते हैं, उनके हाथों में कुदाल जरूर दिखती है।
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बात की जाए कोविड काल की, तो लोग अपने घरों में कैद हो गए थे। पर पर्यावरण प्रेमी प्रताप पोखरियाल ने उस समय आपने जंगलों में उगाई गई गिलोय से रस निकालकर 20 हजार लीटर काढ़ा तैयार किया और उसे घर-घर जाकर फ्री में वितरित किया था।